गुप्त राजाओंके कालमें हिन्द-साहित्य और कलाको उन्नति २२१ लाई। अजन्ताकी गुकानोंका आलेख्य और चित्रकारी इतनी उचकोटिकी है कि संसारके चित्रकार दूर दूरसे उनको देखने लिये आते और मुक्तकण्ठसे उनकी प्रशंसा करते हैं। अतएव इसमें कुछ भी सन्देह नहीं रह जाता कि ईसाकी पांचवीं शताब्दीमें विशेषरूपसे और गुप्तवंशके राजत्वकालमें समान्यरूपसे ललित कलाओंने भारतमें उन्नतिकी चरमसीमा देपी ।* विदेशोंसे विचारोंका विनिमय, हिन्दू-इतिहासमें शायद यह कुमारजीव, जावा और सुमात्रा- वर्ष और अन्य विदेशोंके यीच पहला समय है जब कि भारत. में हिन्दू-सभ्यता। स्वतन्त्रतापूर्वक बड़े बहे विद्वान् पर्यटकों द्वारा विचारोंका विनिमय हुआ। कहते हैं सन् ३५० ई० और सन् ५७१ ई. के यीच भारतसे दस दूतसमूह चीनको भेजे गये । इनमेंसे बहुतसे व्यापारके प्रयोजनसे गये । बहुतसे धोनी पर्यटक भारतमें तीर्थ-यात्रा और चौद्ध धर्मको शिक्षाके लिये आये । बहुतसे भारतीय विद्वान भी चीनको गये। इनमें सबसे प्रसिद्ध कुमारजीव है। वह सन् ३८३ ई० में चीनको गया। भारतके समुद्री किनारों और भारतीय महासागरके द्वीपोंके धीच लोगों का आना जाना पहुन था । भारतीय सभ्यता जायर और सुमात्रातक फैल गई थी। वहांके अधिवासियोंने न केवल योद्ध-धर्मको ग्रहण किया परन् भारतीय फलाओंको भी बहुत अंशोंमें अपने देशमें प्रचलित किया। अजन्ताके चित्रोंमें यह लिखा है कि भारत और फारसके बीच रोमन सम्राटोंको सेवामें दुत भेजे गये । हम ऊपर कह माये हैं कि रोमफे साथ भारतका यहुत यहा व्यापार था। रोमके सोनेके सिके एक बड़ी संख्यामें . • भारतको भाडा विषय बन कर एसपिजी १६९स वियपर सर्वोत्तम प्रमा।
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