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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२५४

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भारतवर्षका इतिहास :

. /- दक्खिनमें निकले हैं। हेपल लिखता है कि कुछ भारतीय राजाोंने रोमके साथ व्यापारको बढ़ाने के लिये रोमके सिकेको नकलें भारतमें भी डाली। तत्कालीन आलेख्य और चिन-विद्याने यूनानी कलासे इस प्रकारका सादृश्य उत्पन्न किया कि कुछ लोग यह कहने लग जाते हैं कि हिन्दुओंने यूनान और रोगसे नकलें की। परन्तु विसेंट स्मिथ और हेवल दोनों इस बात सहमत है कि भारतीयोंने नकल कभी नहीं की, वरन् भारतीय कारीगरों और विशेषज्ञोंने अपनी योग्यतासे शिल्पके पूर्वी और पश्चिमी ऐतिह्योंको इस प्रकार मिला दिया कि इनमें दोनों प्रकार की विशेषतायें पाई जाती है। परन्तु वह शिल्प विशुद्ध भारतीय है, फिसीकी नकल नहीं। इसी कालमें मारतकी दो और प्रसिद्ध पुस्तकें अपने अन्तिम रूपमें सम्पादित हुई। कहते हैं महामारतको वर्तमान पुस्तक गुप्त राजामोंके कालमें तैयार की गई। इस पुस्तक में अब एक लाखसे अधिक श्लोक है। वास्तवमें केवल आठ सहस्र श्लोक थे। भारतके समस्त वडे बहे ग्रन्थों की यह विशेषता है कि ये एकताकी शिक्षा देते हैं। सारे भिन्न भिन्न ऐतियों और उपा. ख्यानोंको एक जगह इकट्ठा करके उनसे एक ही परिणाम निकालते हैं तत्त्वज्ञान के भिन्न भिन्न वादों और धर्म के भिन्न भिन्न सिद्धान्तोंसे भी एक ही परिणाम ग्रहण किया जाता है। प्राचीन भारतकी शिक्षामें यह विचार सर्वव्यापफ है। वेद और उपनि. पंद्, दर्शन और पुराणं, सूत्र और स्मृतियां, ये सब एक ही परमेश्वरको शिक्षा देती है। ये सब एक ही धर्मकी पुस्तकें है। और एक ही मातृभूमियोः उपासना और अर्चनाका प्रतिपादन करती है। वेद चार हुए परन्तु उनकी शिक्षा एक है। वेदोंकी शापाय २