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भारतवर्षका इतिहा लये उन्होंने राजनीतिक दौड़धूप भी की। परन्तु अन्तको पानीय धर्म और स्थानीय सभ्यताको ग्रहण करके यहाँकी सनतामें मिल गये। अब उनके दूसरी जातिके होनेका कोई प्रलापा नहीं है। हिन्दू-धर्मका अपार सागर इतना गहरा मौर विशाल है कि इसमें सब जातियाँ, चाहे वे भारम्भमें कैसी ही म्लेच्छ या रक्त.. पिपासु क्यों न हों, आत्मसात हो जाती है, पर शर्त यह है कि वे इस धर्मको सामाजिक पद्धति और सभ्यताको ग्रहण कर लें। इस कालमें भारतके भिन्न भिन्न भागोंमें इस कालके और मिन्न भिन्न वंश राज्य करते थे। उनका कुछ हिन्दू-वंश । वर्णन चीनो पर्यटक हा नसङ्गने किया है। इन वंशोंके राजत्यकालमें कोई विशेष स्मरणीय या उल्लेखनीय घटना नहीं घटी। हां, इतना मालूम होता है कि इनमेंसे कुछ राजा बौद्ध और जैन धर्मके अनुयायी थे।