हूण जातिके आक्रमण, २३१ . मिहिरगुलको परास्त करनेके सम्बन्धमें हिन्दू ऐतिहासिकोंमें मतभेद है। बौद्ध धर्म के लेखक इस विजयका सेहरा मगध नरेश योलादित्यके सर यांधते हैं। यशोधनकी सभाके कवियोंने इस विजयका श्रेय यशोधनको दिया है। जिसने इस विजयके स्मारकमें दो बड़े स्तम्भ खड़े किये और अपनी प्रशंसामें बहुतसे .गीत बनाये । यह भी लिखा है कि इसका राज्य ब्रह्मपुत्रसे लेकर पश्चिमी सागरतक और हिमालयसे लेकर ट्रायड्डोरमें महेन्द्र- गिरितक फैला हुआ था। यूरोपीय इतिहास-लेखक यह मत हुण जातियोंके भारतमें प्रकट करते हैं कि जिनको इस समयको अवशेष । दस्तावेजोंमें गुर्जट लिखा है वे इसी हण जातिमसे है। उनके मतानुसार राजपुतानेके यहुतसे राजपूत परिवार भी इसी जातिके अवशेष हैं। परन्तु यह भूल जान पड़ती है। यह कहना कठिन है कि ये परिणाम कहाँतक ठीक है परन्तु यह बात मानी हुई है कि हण जातिफे बहुतसे लोग उसकी राजनीतिक शक्तिके नष्ट हो जानेके पश्चात् भी भारतमें रहे और उन्होंने हिन्दु धर्म और हिन्दू-सभ्यताको ग्रहण किया। हूण लोगोंका सबसे शचिशाली राजा मिहिरगुल भी शिवका उपा- सक था, और कुछ माश्चर्य नहीं कि इस जातिके सरदारोंने यलात् या अन्य प्रकारसे हिन्दू स्त्रियोंसे विवाह करके अपने आपको उन वर्णमें प्रविष्ट कर लिया हो जिन वर्णोंसे उन्होंने ये स्त्रियाँ ली थीं। कुछ भी हो, यह प्रकट है कि इस समयतक जो जातियाँ और समूह मध्य एशिया या उत्तरसे भारतमें प्रविष्ट हुए वे अपनी आर्थिक मावश्यकताओंको पूरी करनेके लिये आये। कुछ कालये
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