२३४ भारतवर्पफा इतिहास Mrunm- हण जातिके आक्रमणकारियोंका बड़ी चीरतासे सामना किया, ' इससे उसकी प्रसिद्धि बढ़ गई थी। सन् ६०४ ई० में उसने अपने बड़े बेटे राज्यवर्धनको उत्तर- पश्चिमी सीमापर हूण जातिका सामना करनेके लिये भेजा और उसके साथ ही पीछे पीछे अपने छोटे बेटे हपंको भेज दिया ताफि मावश्यकता पड़नेपर यह राज्यवर्धनकी सहायता कर सके। इन दोनों पुत्रोंके जानेके थोड़ी देर पाद स्वयम् महाराज बहुत धीमार हो गये। हर्प जो निकट था वापस पहुंच गया, और राजाकी मृत्य के समय उसके पास था। थोड़े ही काल पश्चात् राज्यवर्धन भी आ पहुंचा और सन् ६०५ ई० में अपने पिताके सिंहासनपर बैठ गया। परन्तु वह अभी बैठा हो था कि उसे पूर्वसे समाचार मिला कि मालवाके राजाने उसकी वहिन राज्यशीके पतिका वध करके राज्यश्रीको कैद कर लिया है और उसके पैरोंमें बेड़ियां डाल दी है। राज्यवर्धन तुरन्त दस सहस्र सेना लेकर अपनी बहिनको छुड़ाने और उसके शत्रुओंको दण्डित करने के लिये चला। उसने मालवा-नरेशको तो पराजित कर दिया परन्तु बङ्गालके राजा शशांकने जो मालवीय नरेशका मित्र था, राज्यवर्धनको एक समाम बुलाकर धोसे मार डाला। इस बीचमें रायश्री अपने कारागारसे भाग निकाली और विन्ध्याचलके जंगलों में जा छिपी। जय हर्पको यह समाचार पहुंचा तब वह अपनो यहिनको छुड़ाने और शशांकसे पदला लेनेके लिये एक यड़ी सेना लेकर चल पड़ा। हर्षका राजतिलक। हर्षके राजतिलक विषयमें ऐतिहासिकोंमें मतभेद है। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्यव. र्घनके एक या अनेक पुत्र थे। वे भी अल्पवयस्क थे। हर्ष भी पन्द्रह सोलह वर्षका था। पयोंकि उस समय देशमें अव्यवस्था
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