महाराजा हर्ष और चीनी पर्यटक ह्यू नसाङ्ग २३५ फैल रही थी, इसलिये प्रश्न यह था कि गद्दीपर किसको घेटाया जाय। कहते हैं कि भांडी नामक एक दरवारीके प्रस्तावपर राज्यफे सरदारोंने हर्पको गद्दी पेश की और उसने यहुत संकोचके पश्चात् अपतूबर सन् ६०६ ई० में राजा होना स्वीकार किया। हर्ष का सम्बत् सन् ६०६ ई० से आरम्भ होता है। परन्तु • ऐसा जान पड़ता है कि राज्याभिषेककी प्रक्रिया छः वर्ष तक नहीं की गई। विंसेंट स्मिथ उस विलम्वका कारण पतलानेमें असमर्थ है। उसके मतानुसार यह सम्भव है कि स्वय' दर- यारी लोग अभी पूर्णरूपसे हर्षके गद्दीपर बैठनेके पक्षमें न हुए थे। परन्तु हेवलकी सम्मतिमें प्राचीन आर्य रीति-नीतिके अनु. सार गद्दीपर पुत्र या उसको सन्तानका विशेष अधिकार न था। वरन प्रजाका यह अधिकार समझा जाता था कि वह राजाकी मृत्यु के पश्चात् राजाके उत्तराधिकारियों मेंसे योग्यतम मनुष्यको गद्दीपर बैठाये। हिन्दू-इतिहासमें इस प्रकारके अनेक उदाहरण मिलते हैं कि राज्याभिषेकी प्रक्रिया गद्दीपर पैठनेके पश्चात् कुछ फालतक स्थगित रही और उस समयतक पूरी न फो गई जयतक प्रजाको निर्वाचित राजाको योग्यतापर पूरा भरोसा नहीं हो गया। हम ऊपर कह आये है कि हर्षका पहला शशाङ्कफे साथ फाम यह था फि अपनी यहिनफी तलाशमें जाय। ऐसा जान पड़ता है कि यह ठीक उस समय पहुंचा जरकि उसकी यहिन राज्यश्री यचावफी कोई भाशा न देश यानी अनुयायी नियों सहितं जलकर मर जानेको तैयार थी। उसको छुड़ाकर हर्पने शशाङ्कको पराजय दी। फिर शेप भारतको विजय करनेके लिये उसने फमर यांधी। उस समय उसके पास पचास सहन प्यादे और योस सहन सवार सेना हर्षका युद्ध ।
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२६७
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