पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२६९

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महाराजा हर्पार चीनी पर्यटक हा नसाङ्ग २३० .थे। यहे बहे मठ और बिहार शिक्षाके केन्द्र थे। देशमें भगणित विश्वविद्यालय थे। मगधमें नालन्द विश्वविद्यालय 'महायान सम्प्रदायके चौद्धोंका आरसफोर्ट यतलाया जाता है। बनारस प्राहाणोंकी विद्याका केन्द्र था। ये दोनों स्थान एक दूसरेके बरा. घरके प्रतियोगी गिने जाते थे। नालन्द विश्वविद्यालय यद्यपि विशेप- .. नालन्द विश्व- रूपसे बौद्ध धर्मकी शिक्षाके लिये प्रसिद्ध था। विद्यालय । और होनयानो अठारह सम्प्रदायोंके मित्र २ शिक्षणालय वहां धे, परन्तु वहा, वेद, शास्त्र, आयुर्वेद और गणितको शिक्षा भी उच्चकोटिकी दा जाती थी। जो भिक्षु यहा शिक्षा देते थे उनका पद उनकी विशेषताके अनुसार था। जून- साङ्ग पाहता है कि दस सहस्र मिल उपाध्याय इस विश्ववि- धालयमें गहते थे। इनमें एक सहन इस प्रकारके सूत्रों और शास्त्रोंके विद्वान समझ जाते थे। पाच सौने तीस प्रकारके सूत्रों और मशालोमे उपाधि पाई थी। पेचल दस ऐसे थे जो पचास प्रकारके सूत्रों और शास्त्रों के पारङ्गत गिने जाते थे। इनमें से एक य नसाङ्ग भी था। मठके प्रधानाचार्य शीलभद्रसे विषयमें यह समझा जाता है कि ये धर्मकी प्रत्येक शापाया पूर्ण ज्ञान रखते थे। बच्चोंफी शिक्षाके विषयों ा नसान यढे विस्तारसे साक्ष्य देता और उन विद्याशाका वर्णन करता है जिनसे कि अध्यापक अपने शिष्योंको लाभान्वित करनेका यक्ष करते थे। विद्वानों और पण्डितोंकी पश्वी समाजमें राजा महाराजाओंसे भी घडी गिनी जाती थी। यह सामान्यरुपसे माना जाता था कि कोई विद्वान या धर्मात्मा पुस्प यानी विद्या और धर्मको धनके बदलेमें न घेचता था।