सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
नालन्द विश्व-

महाराजा हर्प और चीनी पर्यटक ह्य नसाङ्ग २३७ थे। बड़े बड़े मठ और विहार शिक्षाके केन्द्र थे। देशमें अगणित विश्वविद्यालय थे। मगधमें नालन्द - विश्व विद्यालय महायान सम्पदायके चौद्धोंका आक्सफोर्ड बतलाया जाता है। बनारस ब्राहाणोंकी विद्याका केन्द्र था। ये दोनों स्थान एक दूसरेके बरा- यरफे प्रतियोगी गिने जाते थे। नालन्द - विश्वविद्यालयः यद्यपि विशेष- रूपसे चौद्ध धर्मको शिक्षाके लिये प्रसिद्ध था। विद्यालय। और होनयानके मठारह सम्प्रदायोंके मित्र २ शिक्षणालय वहां थे, परन्तु यहां , वेद, शास्त्र, आयुर्वेद और गणितकी शिक्षा भी उच्चकोटिकी दी जाती थी। जो भिक्षु यहां शिक्षा देते थे उनका पद उनकी विशेषताके अनुसार था। एम. साङ्ग पाहता है कि दत सहस्र भिक्षु उपाध्याय इस विश्ववि. द्यालयमें रहते थे। इनमेंसे एक साल इस प्रकारके सूत्रों और शास्त्रोंके विद्वान समझे जाते थे। पांच सौने तीस.प्रकारक सूत्रों और शास्त्रोंमें उपाधि पाई थी। फेवल दस ऐसे थे जो पचास प्रकारके सूत्रों और शास्त्रोंके पारङ्गत गिने जाते थे। इनमेंसे एक-घू नसाङ्गमी था। मठके प्रधानाचार्य शीलभद्रके विषयमें यह समझा जाता है कि ये धर्मकी प्रत्येक शाखाया पूर्ण मान रखते थे। बच्चोंकी शिक्षाके विपपमें ा नसाङ्ग यड़े विस्तारसे साक्ष्य देता और उन विद्याओं का वर्णन करता है जिनसे कि अध्यापक अपने शिष्योंको लाभान्वित करने का यत करते थे। विद्वानों और पण्डितोंकी पदवी समाजमें राजा महाराजाओंसे भी बड़ी गिनी जाती थी। यह सामान्यरूपसे माना जाता था कि कोई विद्वान या धर्मात्मा पुरुष अपनी विद्या और धर्मको धनके बदलेमें न बेचता था।