पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२७५

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! महाराजा हर्ष और चीनी पर्यटक ा नसान २४१ थे और प्रवेशका आदर्श इतना ऊँचा था कि विदेशोंले आये हुए बहुत थोड़े विद्यार्थी ऊंची कक्षाओं में प्रवेश पा सकते थे। आसामके राजाकी ओरसे ह्यून- जय ा नसाङ्ग नालन्दमें योग- सांगको निमन्त्रण। शास्त्र पढ़ रहा था तब उसको आसाम राजा फुमारने बुलाया। यह राजा हिन्दू-धर्मावलम्बी था । कन्नौज-नरेश हर्षका मित्र था। (हर्ष अपनी राजधानी थानेश्वरसे फन्नौजमें ले पाया था)। परन्तु वह इतना विद्या प्रेमी था कि प्रत्येक धर्मके विद्वानोंको अपने दरवारमें बुलाता था, उनको सेवा और सम्मान करता था। राजा दर्पने धूनेसागको हर्पत पहुंची और उसने कुमारके इस बीच में म नसांगकी प्रसिद्धि ) बुलाया। पास संदेश भेजा कि वह ,चीनी यात्रीको कन्नौजकी राजसभा भेज दे। कुमार स्वयं बड़े समा- रोह और सजधजले एनसांगके साथ कन्नौजको चल पड़ा। मार्गमें दौरा करता हुआ हर्ष उनको मिल गया। चीनी यात्रीने इस प्रथम दर्शनके बहुत ही मनोरञ्जक वृत्तान्त दिये हैं। हर्षका चरित्र खू नसांगने हर्पके व्यक्तिगत चरित्र और उसके जीवनकी रीतिकी बहुत प्रशंसा • की है। अशोकके सदृश हर्पने भी पशु-वध यन्द कर दिया था । और सहस्रोंकी संख्या स्तूप, मठ और धर्म-शालायें आदि बनवाई थीं। यह सभी सम्प्रदायोंके साधुओंको बड़ी वदान्यताले दान देता था। जहां जहां राजा ठहरता था, एक सहस्र बौद्ध भिक्षुओं और पांच सौ ब्राह्मणोंको भोजन मिलता था। प्रतिवर्ष घौद्ध-संघका अधिवेशन होता था जिसमें सिद्धान्तों और अनु. ठानोंके विपयमें सभी यातोंका निश्चय होता था। पांचवें वर्ष. एक यड़ी सभा होती थी। 1