महाराजा हर्ष और चीनी पर्यटक छू नसाङ्ग २४५ एक हाथीपर लादकर उसके साथ भेजे। उधित नामक राजा. को उसकी अरदलीमें भेजा कि वह उसको सीमान्ततक पहुचा यावे। सुप पूर्वक यात्रा करता हुआ ा नसाग जालन्धर पहुचा । यहा उसने एक मास निश्राम किया। फिर एक नया जुलूस लेकर नमककी खानोंके निकटसे होता हुआ पामीर और खुतनके रास्तेसे सन् ६४५ ई० में चीन पहुंच गया। वह अपने साथ सख्यातीत पुस्तकें, मूर्तियाँ और पवित्र प्रसाद ले गया। इस सारे खजानेको लिये हुए वह कई वर्षतक पुस्तक प्रणयनमें लगा रहा । और अत्तको ६४ या ६५ वर्षकी भायुमें सन् ६६४ ई० में उसका शरीरान्त हो गया । सन् ६४६ के अन्त या सन,६४७ के यार- म्ममें महाराज हर्पका देहान्त हो गया। महाराज हर्षकी मृत्यु । राजा हर्पक विषयमें यह महाराज हर्षके समयमें विद्याकी उन्नति। वात मानी हुई है कि यह बहा विद्वान था । उसके अक्षर
- में नव मन् १९१०म नापानमें या तो एक जापानी वोई भिख मे हिमालय चौर
तिब्बतसे पोषियों और मचियोका ३ या भयह लेबर टोकियो पाया था। नापान लोगों ने उसका बहुत सम्मान किया । वह अनेक वर्षतक हिमालय पर्वती- पौर सिम्बतक धिमालय-दिगमें इन तलिखित पोथियों को खोनमें रहा। इन सब पोथियों, मूचियों पोर पवित्र प्रसादीको वहा एक प्रदशनी को गई। यदि मैं मों करता तो उनका जुल्लम भी निकाला गया था। यह भारी सामयी बननमें कई परपोका बीमा घो। +विसेट भियको 'पाकमाई हिसरी पाव इमिया, में पृष्ठ १६५ मैं लिखा शिइने रकतालीस पंकज राज्य किया और ए.१६० पा लिया कि पई पपनो पायुके संतालामव या पात बीसव वर्ष परलोकगत इषा। या अन्तिम पर छपाईकी पति।