चीन, तिम्मत भौर नपालके साथ भारतके सम्बन्ध २५१ चीनी खीफा नाम श्वेततारा था। सन् ६९८० तक चीनके साथ तिब्बतका गहरा सम्बन्ध रहा और इसी कारणले सन् ६४४ ई० और सन् ६४५ ई० में चीनी दूत तिब्बत और नेपालसे होकर हर्पके दरवारमें पहुंचे और इसके पश्चात् जय कन्नौजके राजा अर्जुनने एक चीनी दुतसमूहके मनुष्योंको चंदी कर लिया तो तिब्बत और नेपालने धान उनसेकी सहायता करके अर्जुनको हरा दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि भारतकी उत्तर-पश्चिमी सीमा- पर चीनका प्रकाश सन् ६६१ ई० से सन् ६६५ ई० तक चीनका राज्य कोरियासे लेकर ईरानतफ फैला हुआ था और कपिस भी चीनके राज्यमें मिला हुमा था । राजकीय जुलूसमें सुवातकी उपत्यकाके दूत भी सम्मिलित थे। परन्तु यह शोभायुक्त साम्राज्य चिरकारतक नहीं रहा। इसके पश्चात् सातवीं शताब्दीके आरम्मतक चीनका भारतकी सीमाके साथ कोई राजनीतिक सम्बन्ध नहीं रहा। सन् ७१६ में फिर जब चीगकी मुठभेड़ अरब आक्रमकोंके साथ हुई तो चीन-सन्नाटने सुवात, यदावशान और चमालके मुखियों- को राजकीय प्रमाण-पत्र प्रदान किये और पैसा हो सम्मान यासीन, जावुलिस्तान अर्थात् गजनी, कपिस अर्थात् उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान और फाश्मीरके शासकोंका किया। सन् ७२० ई० में सम्राट्ने काश्मीर-नरेश चन्द्रापीड़को शाही सिलमत प्रदान की और सन् ७३३ ई० में इसके भाई मुक्कापीड़ ललितादित्यका भी ऐसा ही सम्मान फिवा । t ऐतिहासिक पुस्तकों में वापिस कभी शामौरका और कभी उार पूर्वो प्रम- गानिस्तानका माम बड़ा गया है।
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२८५
दिखावट