पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२९

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भूमिका। पहला संस्करण। इस कथनमें बहुत कुछ सत्यांश है कि मनुप्यके लिये अध्य- यनका सबसे उत्तम विषय मनुष्य है। इस वाक्पमें शेपोक मनुप्यसे अभिप्राय किसी एक मनुष्यसे नहीं; वरन् मनुष्य जातिसे है। मनुष्यका जीवन बहुत अल्प है। इस अल्प जीवनमें यह मनुष्योंकी बहुत थोड़ी संख्यासे परिचय प्राप्त कर सकता है। अपने समयकी मनुष्य-जातिका ज्ञान उसको उस समयके ग्रन्थों, समाचारपत्रों और पर्यटनके द्वारा होता है। परन्तु भूतकालके मनुष्योंके कथन, वचन और उनके वृत्तान्त इतिहास द्वारा ही ज्ञात हो सकते हैं। इसीलिये यूरोपीय जातियां और यूरोपीय विद्वान् इतिहास-शास्त्रपर बहुत बल देते हैं। उनका यह कहना उचित ही है कि इतिहासहीसे मनुष्य उत्तम रीतिसे अपने सटाके उस नैतिक नियमके परिणामको मालूम कर सकता है जो उसकी सारी सृष्टिमें व्यापक है। कोई मनुष्य सुशिक्षित कहलानेका अधिकार नहीं रखता जो कमसे कम अपने देश और अपनी जातिके इतिहाससे परिचित न हो। प्रत्येक मनुष्यको 'उचित है कि वह अपने धर्म, रीति-रिवाज, अपनी जातिके नैतिक, सामाजिक और राज- नीतिक इतिहाससे परिचित हो। यह समझना उसका कर्तव्य है कि वर्तमान अवस्पायें किन किन कारणोंका परिणाम है और घे कारण स्वयं पहले किस प्रकार उत्पन्न हुए थे, क्योंकि इस जानकारीसे ही यह उन्नति करने में समर्थ होता है। अपने देश