(३) तथा अपनी जातिके इतिहाससे ही उसको उन विशेषताओंका पता मिल सकता है जिनके कारण वह अन्य देशों और जातियों के मनुष्योंसे पहचाना जाता है । उदाहरणार्थ, यदि हम अपनी ओर देखें तो विशेष रूपसे हमें यह आवश्यक मालूम होता है कि अपने जातीय इतिहाससे परिचय प्राप्त करें। उत्पन्न होनेसे कुछ ही वर्ष पश्चात् हमको अन्य जातियोंके लोगोंसे काम पड़ता है। हम उन लोगोंके स्वभाव, उनके रीति-रिवाज, उनके विचार और उनकी सामग्री अपनेसे भिन्न पाते हैं। स्वभावतः ही हमको उनके स्वभाव और रीति-रिवाज आदिको अपने स्वभाव और रीति-रिवाजसे तुलना करनी पड़ती है। इसका परिणाम यह होता है कि हम दूसरोंके थुछ स्वभाव ग्रहण करने और अपने छोड़नेके लिये तैयार हो जाते हैं। यही बात हमारे धर्म, हमारे विचारों और हमारी रीतियोंकी है। जब यह अवस्था है तो इसके पूर्व कि हम इस प्रकारके परिवर्तनको ग्रहण करें, हमारे लिये उचित है कि इस वातको जान लें कि हमारे वर्तमान स्वभावों, प्रथाओं, रिवाजों और विचारोंका इतिहास क्या है। हमने कर और किस प्रकार उनको ग्रहण किया है, और उनसे हमपर और हमारी जातिपर क्या प्रभाव पहा है। हम प्राय. देपते हैं कि हमारे पालकोंको अपने जातीय इतिहासका बहुत कम ज्ञान है। जातीय इतिहास पढाने की दो रोतियाँ हैं। एक ऐतिहासिक उपाख्यानों और ऐतिहासिक कहानियों द्वारा, जो बालकोंको प्रारम्भिक शिक्षामें सम्मिलित कर दी जाय, और दूसरा ऐतिहासिक पुस्तकों द्वारा। इस नमय प्रारम्भिक शिक्षाकी जो पुस्तकें प्रचलित है उनमें भी मारे इतिहासका बहुत ही कम भाग है। फिर प्रचलित
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