पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३१३

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राजपूतोंका मूल २७७ हिन्दुओंकी प्रबंधशक्ति ऐसी गिर चुकी थी कि अधिकारियोंको एक मानेवाले आक्रमणकारीकी सेनाका उस समयतक पता ही नहीं लगा जबतक,कि आक्रमणकारीने ठोक राजप्रासादके सामने आकर खड्ग नहीं खींच ली। इससे अधिक कुप्रबंध और शासनके विचार विन्दुको अयोग्यता और क्या हो सकती थी! ऐतिहा- सिकोंको यह सम्मति बनाने में किंचित भी संकोच नही कि यह परिणाम उन धार्मिक पक्षपातों और मूढविश्वासोंका था जो उस समयके प्रचलित बौद्धधर्म और तान्त्रिक धर्मने देशमें फैला दिये थे। छठा परिच्छेद ! - राजपूतोंका मूल । यह बात स्पष्ट है कि जिस समय मुसलमान आक्रमण- कारियोंने इस देशपर धावा किया उस समय भारतका यहुत सा भाग भिन्न भिन्न जातियों के राजपूतोंके अधिकारमें था। प्रश्न उत्पन्न होता है कि ये राजपूत कौन हैं ? स्वयं राजपूत यह प्रतिज्ञा करते हैं कि वे प्राचीन आर्यो की सन्तान है और उनका प्राचीन कालके क्षत्रियोसे निकास है। महाराना उदयपुरका वंश सूर्यवंशी क्षत्रियोंसे गिना जाता है और दूसरे वंश अपने आपको चन्द्रवंशी क्षत्रियोंसे गिनते हैं। सामान्यत. हिन्दुभी ऐसा ही मानते हैं। परन्तु अंगरेज ऐतिहा- सिक और विद्वान इस बातको स्वीकार नहीं करते। उनकी सम्मतिमें राजपूतोंके दो विभाग हैं एक विभागमें वे वंश है जो शक जातिसे हैं, और दूसरे विमागमें वे वंश हैं जो भारतके