पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३१४

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भारतवर्षका इतिहास आदिम निवासियों से हैं। इन दोनों विभागोंको हिन्दुओंने अपनी वर्ण-व्यवस्था में सम्मिलित करके क्षत्रिय-पद दे दिया है। इसमें कुछ सन्देह नहीं कि वर्तमान हिन्दू समाजकी वर्ण- घ्यवस्थामें बहुतसे मनुष्य ऐसे मिले हुए हैं जो विशुद्ध आर्य-वंशसे नहीं, जो पूर्व या पश्चिमसे भारतमें आये, और जिनको हिन्दुओंने अपने धर्म में मिलाकर अपने समाजका प्रतिष्ठित सदस्य घना लिया। इस रीतिसे उन्होंने बहुत सी ऐसी जातियोंको भी हिन्दू समाजमें प्रविष्ट कर लिया जो इस देशके मूल निवासियों- गोंड, भोल आदि-से हैं । यह रीति अति प्राचीन कालसे जारी रही और अबतक जारी है। हिन्दू-समाजमें नयी जातियाँ नित्य धनती हैं और सदा यह क्रम जारी रहता है कि पुछको उश वर्ण और कुछको नीच वर्ण दिया जाता है। यह बात भी ऐति. होसिक दृष्टिले प्रमाणित समझ लेनी चाहिये कि शक और यूपची जातिके बहुतसे मनुष्य जो तुर्कमान वंशके थे, ईसाके सन्की प्रारम्भिक शताब्दियोंमें इस देश में आये और हिन्दू-समाजमें मिल गये। यूरोपीय विद्वान जाट, अहीर और गूजर.आदि जातियोंको भी इन्हीं घंशोमेसे गिनते हैं। परन्तु यह विवाद अधिकांशमें व्यर्थ है.। राजपूतों, जाटों, गूजरों और अहीरोंको हिन्दू समाज अपना स्तम्भ समझता है । यह यात कि वे कब और किस प्रकार हिन्दू- समाजमें प्रविष्ट हुए सर्वथा अप्रासङ्गिक है और इसपर अधिक विवाद करनेकी मावश्यकता नहीं, जिस प्रकार ब्राह्मणों के चीसों वंश आर्य-जातिसे नहीं है और जिस प्रकार बहुत सी अन्य जातियां भी वास्तविक आर्य-चंशसे नहीं हैं परन् मिश्रित है, उसी प्रकार वर्तमान राजपूत भी हो सकते हैं। यही पर्याप्त है कि हिन्दू उन्हें क्षत्रिय समझते हैं और उनके कार्य-फलापर गौरव करते हैं।