२८४ भारतवर्षका इतिहास 1 . इस वंशका एक प्रसिद्ध राजा अमोघव अमोघवर्प । हुआ है। इसने सन् ८१५ ई० से सन् ८७७ ई०. तक राज्य किया। इसके समयमें जैनोंके दिगम्बर सम्प्रदाय. का प्रभाव बहुत बढ़ा। सुलेमान नामक एक अरबी व्यापारीने इस राजाको बहुत. प्रशंसा की है। यह राजा म्वयं दिगम्बर सम्प्रदायका जैन था। वह बहुत प्रतापी और ऐश्वर्यवान थां। इस वंशका अन्तिम राजा कक द्वितीय था । इसको पुराने चालुक्य वंशके राजा तैलप द्वितीयने पराजित करके कल्याणके चालुक्य वंशकी नींव सन् ६७३ ई० में रक्खी। इस वंशका सबसे प्रसिद्ध राजा विक्रमाङ्क था। इसने सन् १०७६ ई० से लेकर सन् ११२६ ई०तक राज्य किया। इस राजाके प्रणय और वीरताकी कहानियां उसके राज- कवि विल्हणने एक कवितामें लिखी है। हिन्दू-धर्म-शास्त्रका प्रसिद्ध टीकाकार मिताक्षराका रचयिता विज्ञानेश्वर इसी राजा- के शासनकालमें हुआ। वह कल्याणका रहनेवाला था। सन् ११६० ई० में इस वंशका प्रताप-रवि अस्त हो गया और राज- शक्ति देवगिरिके यादवों और दोर समुद्रके होय्सलोंके हाथ आई। सन् १९५६ ई० से लेकर सन् १९६२ ई० तकके समयमें राजा तैल तीसरेके राजत्यकालमें, उसके सेनापति बिज्जल कलचुरीने विद्रोह करके देशपर अधिकार कर लिया और वह तथा उसके पुत्र सन् १९८३ ई० तक राज्य करते रहे। इस विज्जलके संक्षित राजत्वकालमें शेव-धर्मका एक नवीन मत जारी हुआ जिस का नाम लिङ्गायत-धर्म है। लिंडायत लोग कनाराके जिलों में बढ़े शक्शिाली हैं। वे शिव लिङ्गके पुजारी हैं। वेदोंको नहीं मानते और न पुनर्जन्ममें विश्वास रखते हैं। ब्राह्मणों के बहुत द्वेपी हैं । उनके यहां याल्यविवाहको प्रथा भी नहीं है। वे विधवाओंका भी
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