r दक्षिण और मैसूरका वृत्तान्त २८५ पुनर्विवाह कर देते हैं । लिङ्गायत-धर्मको उन्नतिसे जैन-धर्मकी बहुत हानि हुई। 'मैसूरके होरसलवंशने पश्चिमीवाट विष्णुवर्धन होय्सल । पर अधिकार कर लिया। सबसे पहले उनके मूल पुरुप विष्णुवर्धनने इस राज्यको स्थापित किया । विष्णुवर्धन तीस वर्ष राज्य करनेके बाद मर गया। यह विष्णुवर्धन . जिसका दूसरा नाम वित्तिदेव है अपने याल्यकालमें धर्मात्मा जैन था। उसने अपने मन्त्री गगराजके द्वारा उन सब जैन मन्दिरोंको दुयारा स्थापित किया जिनको चोल राजाओंने नष्ट कर डाला था। परन्तु थपते राज्यको समाप्तिपर वित्ति रामानुजका शिप्य हो गया । उसने वैष्णव मतके संख्यातीत मन्दिर और मठ बनवाये। ये अपनी सुन्दरता और महत्ता, अनुपम हैं । यह वंश सन् १३१० ई. तक उन्नतावस्थामें रहा। तर मलिक काफूर और बाजा हाजीने उसको नष्ट कर दिया। रामानुजाचार्यने 'वांची शिक्षा पाई। रामानुजाचार्य। यह अधिराजेन्द्र चोलके समयमें तृचनापलीके समीप श्रीरङ्गम्में रहता था । परन्तु वहांका राजा शैव था। इस लिये उसके विरोधके कारण रामानुजको श्रीरङ्गम्को छोड़कर मैसूर जाना पड़ा। परन्तु अधिराजेन्द्रकी मृत्युके पश्चात् वह फिर श्रीरङ्गनको वापस चला गया। वहीं बारहवीं शताब्दीके 'चीच उसकी मृत्यु हुई। रामानुजने उपनिपदों और गीतापर विद्वत्तापूर्णमाप्य लिप्ता 'हे और शङ्कराचार्य के मतका पएटन फिया है। रामानुजने शङ्करा- चार्यफे मतके पण्डनमें गीता और उपनिषदोंसे द्वैतवादका उपदेश किया है । शङ्कराचार्य मुक्तिका साधन ज्ञानको यतलाते हैं, और रामानुज भजिको। देवगिरिमें कुछ कालतक यादववंशके राज-
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