२९० भारतवर्षका इतिहास विद्वत्ता केवल ब्राह्मणोंतक परिमित न थी। विद्वानोंके सम्मान और निरीक्षण के लिये आजकल यूरोपीय नमूनेपर एक समाज या 'संघम्' था। उसके सदस्य उच्चकोटिका साहित्य उत्पन्न करते थे। वह समाज प्रमाण-पत्र आदि देता था। चीनी यानी धूनसागके भ्रमण- यूनसाङ्ग सन् ६४० ई० में दक्षिण भारतमें भाया और वृत्तान्तमें दक्षिणी राज्योंका उसने कांचीमें चतुर्मास्य किया। उख। फांची में उस समय राजा नरसिंह वर्मन पल्लवकी राजधानी थी। वह उस समय दक्षिणका बहुत यड़ा राजा गिना जाता था । चौथी शताब्दीमें समुद्रगुप्तको भी कांचीके एक पलध राजासे वास्ता पड़ा था।ख़याल किया जाता है कि पर्फोटाका राजा इस घंशका प्रतिनिधि है । पदूकोटा त्रिचनापली, तोर और मदुराके जिलोंके समीप एक छोटा सा देशी राज्य है। यह पर्यटक पांड्या राजामोंके प्रदेशका भी वर्णन मलकूट । फरता है। यह उसे मलकूटके नामसे पुकारता है। मलफूटमें उस समय यौद्धधर्म नष्ट भ्रष्ट हो चुका था। हिन्दु- मोफे मन्दिर सैकड़ोंकी संख्यामें थे। दिगम्बर सम्प्रदायके जैन भी सहस्रों थे। पाण्ड्यशके कुन नामक एक राजाने (जिस फो सुन्दर या नेदुमारण पापड्य भी कहा गया अत्याचार। है) जैनोंको यात सप्ताया। पहले यह राजा हषयं पड़ा कट्टर जैन था, परन्तु पीछेसे वह अपनी रानीकी प्रेरणासे शेष हो गवा। कहते हैं उसने भाठ सहन जैनोंका चमड़ा उतरवाकर उनको अतीव घेदनासे मारा। . कनका अनोपर
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