सुदूर दक्षिणके राज्य २६५ उसने ४६ घर्षतक बड़ी सफलतापूर्वक राज्य किया और अपने इलाकेका पूरा पूरी भूमाप कराया। सन् १३२७० तक यह वंश अण्डा महत्तायुक अन्त। रहा । इसके पश्चात् धीरे धीरे इसका भषःपात हो गया । सन् १३७० ईमें सारा परलेसिरका दक्षिण विजय- 'नगरके अधीन हो गया। इस वंशके राजनीतिक चोल राज्यका राजनीतिक प्रवन्धका कुछ वर्णन ऊपर हो प्रवन्ध । खुका है। कतिपय मधिक बातें यहाँ लिखी जाती है। राजस्वकी दर उपजका .१६ भाग पौ। और कर ( Cesses ) आदिको मिलाकर सारा :२६ का मनु- मान किया गया है। राजफर नगद या भन्नके रूपमें दिया जा सकता था। सिका सुवर्णका था। प्राचीन कालमें बांदीके सिक्कोका दक्षिण चलन न था। सिंचाई और घास्तुविभागका अतीव पूर्ण प्रबन्ध था। चोल राज्यने अतीव विशाल मन्दिर भौर भयम निर्माण किये । तोरके मन्दिर में चोटीकी एक २५॥ फुट धन शिला दौलमें ८० टनकी है। यह राज्य मपने सामुद्रिक बेडेके लिये विशेषरूपसे प्रसिद या। चोल राजामोंका धर्म शेष था। परन्तु उनके शासन-कालमें दूसरे धम्मौके साथ किसी प्रकारका कोई हस्तक्षेप न होता था। इन राजाओंके राजत्वकालमें पास्तुविधा, कला। आलेख्य और पत्थर काटनेके शिपमे बहुत उन्नति
- य स इत्तान्त विसष्ट मियक 'पाकफोर्ट भारतका इतिहास' (प्रवाशित भम्
१२.र.) से दिये गये। धर्म ।