२६६ भारतवर्षका इतिहास को। परंतु उनमा सविस्तर वर्णन इस पुस्तफमें नहीं किया जा सकता। . 1 (३) पल्लय वंशका शासन । पल्लव-वंशके राजाओंके मूलका वृत्तान्त निश्चयात्मक- रूपसे कुछ भी ज्ञात नहीं। ऐतिहासिक कालमें उनका वर्णन पहले पहल समुद्रगुप्तके वृत्तान्तमें मिलता है जिसने पल्लव राजा विष्णुगोपको सन् ३५० ई० में पराजित किया था। तत्पश्चात् लगभग दो सौ वर्पतफ वे दक्षिण भारतकी भिन्न मित्र शक्तियों से लड़ते रहे। फिर दो सौ वर्पतका घे दक्षिणके सबसे प्रवल राज्य रहे। अपने उत्कर्षके समयमें उनके राज्य- की उत्तरी सीमा नर्मदा थी और दक्षिणी पन्नार नदी दक्षिणमें समुदसे समुद्रसक उनका राज्य था । उनका पहला प्रसिद्ध राजा सिंहविष्णु था। उसका यह दावा था कि उसने दक्षिणके तीनों राज्यों के अतिरिक लङ्काको भी विजय किया है। उसका उत्तराधिकारी उसफा पत्र महेन्द्र महेन्द्र वर्मन् । यर्मन प्रथम हुआ। उसकीण्यासि पहाड़ोंसे काटो हुई गुफाओंके उन अगणित मन्दिरोंसे है जो सूचनापली, चिङ्गले- पुट, उत्तरी अर्कोट और दक्षिणी अर्काटमें मिलते हैं। उसने महेन्द्रयाड़ी नामका एक बड़ा नगर बसाया और उसके समीप एक बड़ा तालाब अपमे नामपर खुदवाया। इनके बँडहर उनकी महचाफे प्रमाण है। यह राजा आरम्भमें जैन था परन्तु फिर उसने शेषमत ग्रहण कर लिया और जैनोंके प्रसिद्ध पाटलिपु- तिम्को नए किया। यह मठ दक्षिणी अरकाटमें था। इसाचंशका सबसे नामी राजा नरसिंह नरसिंह वर्मन् । धर्मन था। इसने पुलकेशिनको पराजित कर-
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