सुदूर दक्षिणके राज्य २६७ के सर ६४२ ई० में वातापि (वादामि) पर अधिकार प्राप्त किया और चालुक्य वंशकी पहली शाखाकी समाप्ति कर दी। इस घटनाले दो वर्ष पहले चीनी यात्री धूनसागका पर्यटन। घनसाङ्ग पल्लव राज्यकी राजधानी फाचीमें आया। उसने यहाके निवासियोंकी वीरता, सत्यप्रियता, विद्या-रसिकता और परोपकार भावकी बहुत प्रशसा की। कोची नगरका मानचित्र प्रोफे अध्यापक गेडस नामक सर गेडसकी सम्मतिया । एक अगरेज विशेषशने काची नगरके मानचित्रकी प्रशंसा मागे लिखे शब्दों में की है :- "यहोपर एक ऐसा नगर बसा हुआ है जो केवल अपने यदे यहे धनाढ्य और भिन्न भिन्न प्रकारके मन्दिरोंके लिये हो स्मर- णीय नहीं, परन्तु इसको जिस पातसे मैं प्रसन्न हुआ ह वह यह है कि इस नगरका नकशा अतीय उपयुक्त और पूर्ण है। वह ऐसे स्केलपर है जिसमें विशाल महत्ताके साथ व्यक्तिगत और शिल्प- सम्बन्धी स्वतन्त्रतायो ऐसा मिलाया गया है कि मुझे इस प्रकार- का नमूना न केचल भारतमें वरन और कहीं भी नहीं मिला। मन्दिर ।. यू मसाङ्गके समयमें इस नगरमें लगभग एक सीमठ थे जिनमें दस सदससे अधिक भिक्षु थे। लगभग इतने ही मन्दिर जैनोंके थे। काची हिन्दुओंके सात पवित्र नगरों में गिना जाता है। यहाँ धर्मपाल नामक एक जन्म स्थान। विख्यात बौद्ध प्रचारक उत्पन्न हुआ था। यह शीलभद्रके पहले नालन्द विश्वविद्यालयका प्रधान प्रावियेक या चांसलर था। धर्मपालका
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