पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३३९

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हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना १६६ सी लड़ाइयां लड़ी, प्रत्यक्षरूपसे 'किस्सा-कहानीसे अधिक महत्व नहीं रखती। इन पृष्ठोंमें मुसलमानोंके पहले के शासन- कालके भारत-इतिहासका संक्षिससा दिग्दर्शन कराया गया है। परन्तु प्रकृत उद्देश्य यह रहा है कि भारतीय नवयुवकोंको भार- तीय सभ्यता, भारतीय विचार और भारतीय साहित्यकी कथा संक्षिप्तरूपसे सुना दी जावे। अच्छा नो यह होता कि यह कथा फेवल वर्णनतक ही परिमित रहती परन्तु कुछ कारणोंसे यह भावश्यकता जान पड़ती है कि हिन्द-सम्यताफी तुलना वर्तमान कालकी यूरोपीय सभ्यतासे की जाय, जिससे इस पुस्तकके पढ़नेवालोंको दोनों सभ्यताओं के विषयमें सम्मति स्थिर करने में सुविधा हो। इस तुलनाकी आवश्यकता ।। है कि 'क्षिप्त रीतिसे यह मी यह भी आवश्यक प्रतीत यता दिया जाय कि इस तुलना करनेकी क्यों मावश्यकता है, और तुलना करनेका यह काम पाठकोपर क्यों नहीं छोड़ा जा सकता'चात यह है कि भारतके इतिहासमें भारतीयोंने पहली यार किसी दूसरी जातिसे चौद्धिक और माध्यात्मिक पराजय पाई है। माशा की जाती है कि यह पराजय स्थायो नहीं है। इसके पहले याहरफे आक्रमणकारी आते रहे और राजनीतिक परि. वर्तन करते रहे, परन्तु सयने हमारी सम्यता, हमारे रहन-सहनके और हमारे सामाजिक जीवनके सामने सिर भुफाया। प्रत्येक आक्रमणकारी जातिने इसमें अपना फल्याण, अपना प्राण और अपना गौरव समझा कि यह हमाग धर्म प्रहण करफे और हमारे समाजमें प्रविष्ट होकर अपने मापको भारतीय जातिका अङ्ग पनाये। प्राचीन आर्यों के मारतमें आनेके पश्चात् और मुसलमानों भाकमणके पहले यहुत सी जातियां और 7