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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३४६

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मारत..। हार." भिन्न शाखाओंमें जो कुछ आविष्कार किया है उसका जानना और समझना हमारा कर्तव्य है। परन्तु इससे यह आवश्यक नहीं ठहरता कि हम केवल उनका उच्छिष्ट उठानेवाले हो जाय और अपनी बुद्धि और समझको उसमें कुछ दखल न दें और हमारी जातिने जो कुछ आविष्कार किये हैं उनको केवल इस लिये तुच्छ समझे कि ये राजनीतिकरूपसे पराजित जातिके आविष्कार है और इसलिये वे हेय हो गये हैं। अंगरेज जातिका उद्देश्य । नीतिज्ञ अभिमानसे यह कहते हैं कि अगरेज जातिके पहुँतसे राज- उनका उद्देश्य यह है कि वे भारतको पाश्चात्य सभ्यताकी शिक्षा दें और उसके सारे राजनीतिक और सामाजिक संगठनको वर्तमानकालको सर्वोत्तम जातियोंके नमूनेपर ढाल दे। भार- तीयोंमेंसे जो व्यक्ति इस विचारका विरोध करता है और अपनी जातिको भारतीय ढंगपर जीवन ढालनेका उपदेश देता है तो ये उसको पाश्चात्य सभ्यताका शत्रु यतलाते हैं और भारतकी प्रगतिके मार्गमें बाधक समझते हैं। हम उनके इस दावेको स्वीकार नहीं करते। इस अवसरपर प्राचीन हिन्दु-सभ्यता क्या हिन्दू जातिकी और वर्तमान पाश्चात्य सभ्यताकी तुलना सभ्यता' उन्नतिका करनेका एक और ' कारण भी है और अन्तिम शन्द है? वह यह है कि जिस प्रकार पाश्चात्य सभ्यताके भक्त हमें पाश्चात्य जातियोंका अनुकरण करनेका उपदेश देते हैं और प्रत्येक भारतीय वस्तु, भारतीय विचार भारतीय रीति-नीति और भारतीय संस्थाओंसे घृणा करना सिखलाते हैं, उसी प्रकार भारतीयों में एक और जन-समुदाय भी जो यह विश्वास करता है कि हिन्दू सभ्यता -