पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३८३

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हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना ३४१ सकतीं । इस विषयमें वर्तमान कालका यूरोप मध्य कालसे भी पोछे देख पड़ता है। पदार्थ विज्ञानका निस्सन्देह पदार्थ-विज्ञानमें अर्वाचीन कालने उन्नतिकी पराकाष्ठा देखी है। पदार्थ- प्रभाव यूरोपकी विज्ञानमें जो आविष्कार गत तीन चार सौ सभ्यतापर। वर्षों में हुए हैं वे आश्चर्यजनक हैं और उन्होंने युगकी काया-पलट कर दी है। संसारको बहुत संक्षिप्त सा स्थान बना दिया है और देश और कालका लोप कर दिया है! संसार- की उपजमें भी यहुत वृद्धि हो गई है। मानधी आवश्यकतायें और मानवी रुचियां भी बहुत बढ़ गई है। परन्तु यह खेदसे कहना पड़ता है कि इन विधाओंमें जितनी आश्चर्यजनक उन्नति संसार- ने की है उतना ही आश्चर्य-जनक हास संसारने अपने राज- नीतिक शीलमें किया है। यूरोप और अमरीका अपने इन आश्चर्य जनक आविष्कारोंका उपयोग थोड़ेसे मनुष्योंके लाभार्थ कर रहा है । मनुष्य समाजको इन आविष्कारोंसे जो थोड़ा-बहुत लाभ पहुंचता है वह केवल उदर-संवन्धो है। वह लाभ भी स्वय- मेव उन्हें धनाढ्य पूजीवालों और शकिशाली श्रेणियोंका दास बमाता है। चाहिये तो यह था कि ज्ञानकी वृद्धिसे और प्रकृतिके विजयोंसे मनुष्यको स्वतन्त्रता और अवकाश अधिक मिलता, परन्तु परिणाम यह हुआ है कि इन जानकारियोंकी बढ़तीसे मनुष्यकी एक प्रचुर संख्या पहलेफी अपेक्षा अधिक दरिद्र और तङ्ग हो गई है। ज्ञानकी वृद्धिसे मनुप्यके शीलमें जो उन्नति होनी चाहिये थी और उसकी मनुष्यतामें जो सज्जनता आनी चाहिये थी। यह नहीं आई। वरन् अभिमान, गर्य, दुष्टता, लोम, ट्रेप और मनीति, इन सब पुरे स्वभावों में वृद्धि हो गई। मनुष्य अपने इस सारे शान-भाण्डारको दूसरे मनुष्योंपर अत्याचार,