३४० भारतघर्षका इतिहास नेपोलियन स्त्री-शिक्षाके पक्षमें भी न था। इस एक सौ वर्षके समयमें यूरोपीय स्त्रियोंने अपने आर्थिक अधिकारोंमें बहुत उन्नति की, जिसका आवश्यक परिणाम यह हुया कि उनकी आर्थिक जिम्मेदारियां बढ़ गई और उनके साथ ही उनके राजनीतिक स्वत्व भी बढ़ गये। निर्दोष नियम यह है कि जो श्रेणियां जातिको आर्थिक समृद्धिकी ज़िम्मेदार है उनका अधिकार है कि वे जातिके राजनीतिक प्रबंधमें सम्मिलित हो। राजनीतिक अधिकार आर्थिक जिम्मेदारियोंके साथ साथ जाते हैं। हम नहीं कह सकते कि किस प्रकार संसारमें यह नियम प्रतिष्ठित किया जा सकता है कि स्त्रियां आर्थिक रूपसे दास भी न हों और.. उनको अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के लिये उतना घोर श्रम मी न करना पड़े जितना कि यूरोपीय स्त्रियाँको करना पड़ता है। सच तो यह है कि आधुनिक कालमें न तो हमें एशियाकी त्रियोंकी अवस्था सन्तोष जनक देख पड़ती है और न यूरोपीय स्त्रियोंकी आत्म-त्याग, प्रेम इन्द्रियनिग्रह, और सेवाके विशिष्ट गुण एशियाकी स्त्रियों में अधिक हैं परन्तु बौद्धिक और विद्या-सम्बंधी उन्नति और स्वतंत्रताके विचार-विन्दुसे यूरोपीय स्त्रियोंकी अवस्था कई गुना अच्छी है प्राचीन हिन्दू-समाजमें स्त्रियोंकी जो स्थिति थी वह हमको मँझले दर्जे की प्रतीत होती है। ललित कलाओं अर्थात् आलेल्प, साहित्य और कला । तक्षण, लकड़ीका काम, चित्रकारी, रङ्ग बनाना और कविताके विषयमें हम यह कहनेका साहस कर सकते है कि अर्वाचीन कालफी सभ्यताने प्राचीन कालकी सभ्यतापर कोई उन्नति नहीं दिखलाई। इन कलामओंके जो नमूने प्राचीन भारत, भाचीन मिस्र, प्राचीन यूनान और कुछ दूसरे भागोंमें मिलते है उनका सामना वर्तमान कालकी ललित कलायें नहीं कर
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