हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताको तुलना ३४५ वासियोंने उनका बहुन सम्मान किया। उन्होंने जापान के लोगों- को पश्चिमी सभ्यताकी नकल करनेवाले कहकर बहुत भर्सना की। एक जापानी समावार-पत्रने क्रुद्ध होकर यह उत्तर दिया कि रवीन्द्रनाथ ठाकुरका शब्द एक कत्रका शब्द है जो श्मशान भूमिसे आता है। इसका यह अर्थ था कि रवीन्द्रनाथका अपना देश कवस्थान है और उनके शब्दका यही मूल्य है जो उस व्यक्ति- के शब्दका होना चाहिये जिसने अपने देशको कत्रस्थान बननेसे न घचाया हो। जब रवीन्द्रनाथ ठाकुर अमरीका पहुंचे तो युद्ध अभी अपने जोरोंपर था। उन्होंने अमरीकावालोंको बहुत कुछ चेता- वनी दी और अमरीकन खियोंकी भी बहुत कुछ डांट-डपट की । परन्तु युद्धके पश्चात् जब वे फिर यूरोपके भ्रमणको गये तो यूरोपीय साहित्य और फलापर मुग्ध होकर आये । हम कविके हृदपकी इन दोनो अवस्थाओंको समझ सकते हैं और उनके इस भावका सम्मान करते है कि हमें यूरोपीय विद्याओं और फलामोंको घृणाकी दृष्टिसे नहीं देखना चाहिये। हम हृदयसे इस भावके बहुत विरोधी हैं कि यूरोपीय सभ्यता और यूरोपीय विद्याओंक विरुद्ध घृणा फैलाई जाय और हिन्दुओंको यह शिक्षा दी जाय कि उनके याप-दादा जो कुछ उनको पतला गये पद जीवन के प्रत्येक अंगमें अन्तिम शब्द था। परन्तु सच तो यह है कि यद्द गुन्या हमें सुलझने योग्य नहीं मालूम होती कि यूरोपीय सभ्यता और संस्कृतिको स्वदेशमें प्रचलित फरके हम फिस प्रकार उसके बुरे परिणामोंसे बच सकते है। अभीतक हमको यूरोपीय सभ्यता- विपाक प्रभावोंका कोई प्रतीकार नहीं मिला। युरोपका व्यापा- रिक और औद्योगिक भाव अतीय जघन्य है। यूरोपी युद्ध- कला अनीय शीलसे गिरी हुई है। यूरोपका माघ्राज्यवाद संसार-... के लिये अतीय भयानक है। और यह गर यूरोपीय
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