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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३८९

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. हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताको तुलना ३४७ दिये जाते थे और न विद्यार्थियोंसे कुछ शुल्क लिया जाता था। अधिक सम्भव है कि आरम्भिक शिक्षाका काम मातायें स्वय करती थी। इसी शिक्षा-प्रणालीमें वे सय जिम्मेदारियां आ जाती थीं जो याजकल राज्यके सिरपर हैं। इस शिक्षा- प्रणालीमें वे दोपन थे जो आजकलकी सरकारी शिक्षाकी रीति- योंमें पाये जाते हैं । परन्तु यूरोप और अमरीकामें राज्यने जो व्यापक अधिकार अपनी प्रजापर प्राप्त किये हैं उनसे चहांकी औद्योगिक अवस्थाओंमें यह आवश्यक है कि शिक्षाका सारा उत्तरदायित्व राज्य अपने ऊपर ले । शुल्क न लेनेका भाव, वरन स्कूल के विद्यार्थियोंकी अवस्थामें भोजन देनेका भाव भी, यूरोप और अमरीकामें सामान्य रूपसे फैलता जा रहा है। उन महा- देशोंमें शिक्षा सामान्य और अनिवार्य है। वह निःशुल्क भी है। और अव यह विचार व्यापक रूपसे फैलता जा रहा है कि स्कूलके विद्यार्थियोंके स्वास्थ्यका उत्तरदायित्व भी राज्यपर है। बहुतले देशोंमें तो स्कूलके बच्चोंको कमसे कम एक समय विना मूल्य भोजन दिया जाता है और उनकी चिकित्साका प्रबंध भी राज्यकी भोरसे निःशुल्क होता है। ऐसी अवस्थामें शिक्षाका सारा विभाग राज्यके हाथों में है। प्राचीन भारतमें समाज इन सर्व आवश्यक जिम्मेदारियोंको स्वीकार करता था परन्तु राज्यको शिक्षाकी बातोंमें हस्तक्षेप करनेकी माशा न देता था। प्राचीन शैली उस समयके रहन सहनके ढङ्गका फल था। आधु- निक रीति यूरोपके औद्योगिकवाद और वाणिज्यवादका परि- णाम है। हाँ, शिक्षाकी रीतियोंमें जो उन्नति यूरोप और अम- रीकाने की है यह विचारणीय है। उससे भारतके शिक्षा- शास्त्रियोंको अवश्य लाभ उठाना चाहिये। i