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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३९०

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३४८ भारतवर्ष का इतिहास विद्या सभायें और विद्यापीठें। उच्च शिक्षा और वैज्ञानिक अन्वेषण तथा खोजके लिये जो साधन आधुनिक यूरोप और अमरीकाने ग्रहण किये हैं वही प्राचीन भारतमें प्रचलित थे। देशमें स्थान स्थानपर विद्यापीठे फैली हुई थीं। वहां सैकड़ोंकी संख्या अध्यापक रहते थे और सहस्रोंकी संख्यामें विद्यार्थी शिक्षा पाते थे। एशियाके सभी देशोंसे लोग यहाँ शिक्षा पानेके लिये आते थे। इसके अतिरिक्त ऐसी विद्या-सभायें और परिपद् थे जो विद्वानोंकी सहायता करते थे और उनको उनकी रचनाओं और आविष्कारोंपर प्रमाण-पत्र और उपाधियाँ प्रदान करते थे। वर्तमान भारतमें शिक्षाकी प्राचीन शैली सर्वथा नष्ट हो चुकी है । उसका पुनरुद्धार करना प्रायः असम्भव है। इसलिये हमें यह सोचना होगा कि आधुनिक यूरोपीय पद्धतिमें हम क्या क्या परिवर्तनकर उसे अपनी अवस्थाके अनुकूल बना सकते हैं। स्वास्थ्य-रक्षाके विपयमें भी हमको प्राचीन स्वास्थ्य-रक्षा । काल अर्वाचीनकालसे बहुत पीछे नहीं प्रतीत होता। इसका अर्थ यह नहीं कि आजकलकी अस्त्रचिकित्सा और वैद्यकके भिन्न भिन्न विभागोंमें जो उन्नति यूरोपने की है उसको हम आदरके योग्य नहीं समझते। अस्त्रचिकित्सा और । कोटाणु-विद्या (वेकोरियालोजी) में यूरोपने विस्मयजनक उन्नति की है। स्वास्थ्य-रक्षाके विभागमें भी यूरोप और अमरीकामें जो उपाय रोगोंको रोकनेके लिये किये जाते हैं वे भूरि भूरि प्रशंसाके योग्य हैं। परन्तु हिन्दू आर्यलोग भी स्वास्थ्य-रक्षाके सम्बन्धमें जो लेख छोड़ गये हैं वे भी आदरणीय है। उदाहर- णार्थ, घरों, गली कूचोंकी सफाईके सम्बन्धमें जल और वायु- को शुद्ध रखने के लिये जो 'आदेश हिन्दु-शास्त्रोंमें मिलते हैं वे