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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३९१

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हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताको तुलना प्रकट करते हैं कि हिन्दू इस विभागमें कितने सावधान थे। पानीके झरनों, कुओं, नदियों और सड़कों आदिको गंदा करने- चालेके दण्ड नियत थे। गृह-निर्माणमें प्रकाश और घायुका विशेष ध्यान रक्खा जाता था । छूतके रोगोंके दिनों में विशेष उपायोंका उपयोग किया जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि कीटाणु-विद्याके सम्बन्धमें भी हिन्दुओंको पर्याप्त शान था। साधारणतया हिन्दू शरीरको स्वच्छता और सार्वजनिक सफाई की ओर यथेष्ट ध्यान देते थे। सभी शास्त्रोंमें इस विषयमें उपदेश पाये जाते हैं। नगरों और उपनगरोंके म्युनिसिपल प्रयन्ध भी सफाईके विभागका अस्तित्व पाया जाता है । औषध विना मूल्य याँटना, रोगियोंकी देख-रेख करना, और उनको औषधि, भोजन और वस्त्र मुफ्त देना इन बातोंको हिन्दू विशेषरूपसे अच्छा सम- झते और सम्मानको दृष्टिसे देखते थे। महाराजा चन्द्रगुप्तके राजत्वकालसे बहुत समय पहले यह भाव हिन्दुओंमें पाया जाता है। मौर्यवंशके राजत्वकालमें तो राज्यका यह कर्त्तव्य ठहराया गया था कि सार्वजनिक चिकित्सालय और औषधालय न केवल मनुष्योंके लिये बनाये जायें वरन् पशुओंके लिये भी। महा- राजा अशोकने न केवल भारतकी भिन्न भिन्न दिशाओं में इस प्रकारके चिकित्सालय बनवाये, वरन् अपनी सीमाओंके बाहर विदेशोंमें भी इस पुण्य कार्यको अपने व्ययसे प्रचारित किया। मनुष्य-समाजके इतिहासमें सम्भवतः हिन्दुओंने ही सबसे पहले इस कामको जारी किया और सबसे प्रथम उन्होंने ही एक पूर्ण चिकित्साशास्त्रकी नींव डाली। दूसरे देशोंके वृत्तान्ताका हिन्दुओंको सभ्यताका एक दुल ज्ञान न होना। अङ्ग यह था कि हिन्दू दूसरे देशोफे वृत्तान्तोंसे यथेष्ट परिचय न रखते थे