पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४१४

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भारतवर्षका इतिहास

. सदस्यों में राजकुमार, मन्त्री, सेनापति, विभागोंके उच्च पदाधि- कारी, करद रईस, धनी-मानी और ऐसे लोग सम्मिलित होते थे जिनको विशेषरूपसे घुलाया जाता था ।* शुक्र-नीतिसे ऐसा प्रतीत होता है कि सभा-मन्दिरमें प्रत्येक सदस्यके लिये स्थान नियत होता था [देखो अध्याय १ श्लोक ३५३] । कार्यवाही. को सुचाररूपसे सम्पादन करनेके लिये उन समस्त नियमोंपर- आचरण होता था जिनका उपयोग आजकल पार्लिमेण्ट में होता. है। किसी सदस्यको असभ्य भापामें बात करने या किसी दूसरे सदस्यपर कटाक्ष करने या उसपर किसी अनुचित संकल्प., का दोपारोप करने या कोई ऐसी बात कहनेकी आज्ञा न होती थी जिसका कि उसे पूर्णरूपसे ज्ञान न हो। समाके अधि. वेशनके समयमें सदस्योंको आपसमें यातचीत करनेका निषेध था। कोई भी व्यक्ति प्रधानकी आज्ञाके, बिना न पोल सकता था। इन अधिवेशनोंमें प्रायः राजा स्वयं प्रधान होते थे। चाणक्यके अर्थ-शास्त्र और शुक्रनीतिमें अधिवेशनोंकी कार्यवाही- का सविस्तर वर्णन है। मन्त्रि-परिपद् मन्त्रियोंकी कौसिलका नाम- था। इसके सदस्योंकी संख्या भिन्न भिन्न सूत्र कारोंने मिन भिन्न लिखी है । वृहस्पति-शाखाके सूत्रकार लिखते हैं कि मन्त्रि-परिषदके समासद सोलह होने चाहिये । मोशनस. शाखावाले उनकी संख्या वीस नियत करते हैं। मनुस्मृतिमें बारहपर घस कर दी गई है। चाणक्यने कोई विशेष संख्या नियत नहीं की, परन्तु यह सम्मति प्रकट की है कि संख्या पर्याप्त होनी चाहिये । "अवुलफजलने भी अपनी पुस्तक भाईने-थकवरी- । “देखो पक्रनीति पध्याय । यो ३५१ पीर वाकयामत अध्याय १४ विपस्मत मन्त्रि-परिषद्।