पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४१६

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३७४ भारतवर्षका इतिहास भारत और अन्य शास्त्रों में भी मंत्रीका निर्वाचन करनेके लिये सविस्तर उपदेश दिये गये हैं। ये उसी प्रकारके सद्गुण हैं जो 'यूनानके तत्ववेत्ता अफलातूनने अपनी "रीपब्लिक" नामकी पुस्तकमें वर्णन किये हैं और अरस्तूने अपनी राजनीतिमें लिखे है। यूनानी दूत मगस्थनीज़ चन्द्रगुप्तके राजत्यकालके विषयों लिखता है कि "मंत्रियोंका निर्वाचन सामान्यतः ब्राह्मण विद्वानों.. मेंसे किया जाता है।" वह लिखता है कि "संख्याकी दृष्टिसे यह नन-समाज बहुत परिमित है, परन्तु उच्चकोटिकी बुद्धिमत्ता 1 और न्यायके गुणसे अलंकृत है । इसीलिये उसको यह अधिकार है कि यह गवर्नर, प्रान्तोंके उच्च पदाधिकारी, डिपुटी गवर्नर, कोपाध्यक्ष, स्थल सेनापति, सागर-सेनापति, कंट्रोलर और कमिश्नरोंकी नियुक्ति करे।" मंत्री कितने होने चाहिये, इसपर भी बहुत कुछ विचार किया गया है, चाणक्यको सम्मतिमें मंत्री फेवल तीन या चार होने चाहिये । मनुस्मृतिमें सात या आठकी संख्या नियत की गई है। नीति-वाफ्पमृतमें तीन, या पांच या सातकी संख्या लिखी है। शुक्र-नीतिमें दस उच्च मंत्री इस प्रकार वर्णित है:- (पहला) पुरोहित, (दुसरा) प्रतिनिधि, (तीसरा) प्रधान, (.चौथा) सचिव, (पांचवां ) मंत्री, (छठवां) प्राड्: विवाक अर्थात् चीफ़ जज, (सातवां ) पण्डित अर्थात् कानूनी मंत्री, (आठवां ) सुमन्त्रक अर्थात् युद्ध-मन्त्री, (नवां) आमात्य अर्थात् स्टेट सेक्रेटरी, (दसवां ) दूत । मिलिन्द न्याय (पट्टो) में राज्यके छउच्च पदाधिकारियोंका उल्लेख है। उनमेंसे प्रधान अर्थात् महामन्त्री सबसे उच्च कोटिका गिना जाता था। परन्तु पुरोहित मी अत्युच्च स्थान रखता था। चाणक्यने राजाका यह कर्तव्य ठहराया है कि वह पुरोहितकी