पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४१९

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हिन्दुओंको राजनीतिक पद्धति ३७७ 1 अधीनस्थ विभाग। चाणक्यने प्रबंध-सम्बन्धी विभागोंके अठारह प्रकारोंका 'वर्णन किया है । परन्तु व्योरा देते हुए तीस विभागोंका उल्लेख किया है। इनमें सबसे आवश्यक विभाग परिगणनका विभाग था। इसमें कर्मचारियोंकी एक भारी संख्या होती थी। नियमपूर्वक सारे राज्यका लेखा रखते थे और आय तथा व्यय- की पूरी पड़ताल करते थे। अर्थ-शास्त्र में यह लिपाई कि भासाढ़ मासमें नियमपूर्वक प्रत्येक विभागके केन्द्र स्थानमें हिसाय पहुंच जाते थे। असावधानी होनेपर ज़िम्मेदार अफसरको अर्थदण्ड देना पड़ता था। दूसरा विभाग कोपका था । इसके अधीन प्रत्येक प्रकारको नगदी, सोना-चांदी, बहुमूल्य पत्थर, हीरे-रत्न, मोती और प्रत्येक प्रकारकी सरकारी सम्पत्ति और भाण्डार थे। अर्थशास्त्र और अन्य पुस्तकोंमें सब रनोंके भिन्न भिन्न प्रकारोंका वर्णन है। तीसरा विभाग खानोंका था। इसके सिपुर्द खानोंको मालूम करने, उनको खुदवाने, और उनमेंसे निकले हुए पत्थर और रन आदिको बेचनेका काम था। चौथा विभाग खनिज पदार्थीका था। पांचवां विभाग रकसालका था। इसके सिपुर्द सिवकोंको बनाने और चलानेका काम था। छठा विभाग वाणिज्यका था। यह व्यापारके सम्बन्धमें प्रत्येक प्रकारकी जानकारी इकट्ठी करता और जनता तथा व्यापारियोंको देता था। इस विभागका कामथा कि भीतरी और बाहरी मण्डियोंके समानारोका ज्ञान रवाने और व्यापारकी वस्तुओंके मूल्यकी देख-रेख करता रहे। सातवां विभाग जङ्गलोंका था। इसके सिपुर्द वनोंका