पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४२३

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हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति ३८१ हैं कि "वेद, स्मृति, और वेदके जाननेवाले पुरुषोंका भावार,' यही कानूनके मूल स्रोत है।" वे इसके अतिरिक्त यह भी लिखते है कि न्यायके लिये चेदान्त, पुराण, देशाचार, और ऐसे कुल- धर्म और जाति धर्म जो वेद विरुद्ध न हों, किसानों, व्यापारियों, गडेरियों, साहकारों और शिल्पियोंकी प्रथायें मान्य हैं। मनुस्मृतिमें भी कानूनके वार ही आधार बतलाये गये है, अर्थात् वेद, स्मृति, प्रथा, और अपने अन्तरात्माकी आज्ञा । याज्ञवल्क्य स्मृतिमें इन चार आधारोंके अतिरिक्त दस आधार और निकाले गये है। स्वयं वेदों में कुछ अधिक कानूनी सामग्री नहीं है। स्मृति- योंमें बहुत है। उन्हींके आधारपर हिन्दुओंका कानूनी भवन निर्मित हुआ है। आरम्ममें ये सब नियम सूत्रोंके रूपमें वर्णित किये गये थे। ये सूत्र बहुत सम्भव है कि विक्रमी संवत्के एक सहस्र या पन्द्रह सौ वर्ष पहले प्रवलित थे। इन सूत्रोंके सहारे- पर धर्म-शास्त्र बताये गये और इन धर्म-शास्त्रोंपर फिर कभी कभी सिन्न भिन्न विद्वान अपनी टीकायें और व्याख्यायें लिखते रहे।याज्ञवल्क्य धर्म शास्त्र में निम्नलिपित स्मृतियोंका उल्लेख है.--, मनु, अत्रि, विष्णु, हारीत, याज्ञवल्क्य, औशनस, अङ्गिरस, यम, आपस्तम्ब, सम्बर्त, कात्यायन, वृहस्पति, पराशर, व्यास, शंख, लिखित, दक्ष, गौतम, शातातप और वसिष्ठ। इनके अतिरिक्त और भी धर्मशास्त्र हैं जिनका इसमें नाम नहीं। इनमें सबसे प्रसिद्ध नारद है। इसके पश्चात् पौराणिक कालमें चे पुस्तके सकलित हुई जिनको आजकल मिताक्षरा और दायभाग आदि नामोंसे पुकारा जाता है। हिन्दुओंकी सभ्यता में प्रचलित रीति नीतियों को बहुतं उस कानूनी स्थान दिया गया है। और यह भी वर्णन किया गया है कि किसी देश या प्रान्तको विजय करके उसके