पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४३३

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हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति ३६१ थे और इस विभागके उच्च अधिकारीके निरीक्षणके पश्चात् अच्छे योग्य हिसाब जाननेवाले गुणक इन हिसायोंकी, जांच 'पड़ताल करते थे। तदनन्तर ये पड़ताल हुए हिसाव भिन्न भिश विभागोंके मन्त्रियों के पास भेजे जाते थे और मन्त्रि-परिपद्में भी उपस्थित किये जाते थे। परराष्ट्र-सम्बन्ध । इतिहाससे मालूम होता है कि हिन्दू राजाओं और सम्राटों. के सम्बन्ध बाहरके देशोंके साथ गहरे थे। चन्द्रगुप्तके दरवारमें शाम देशके राजा सिल्यूकस निकोटरका दूत मगस्थनीज़ रहता था और बिन्दुसारकी राजसभामें सिरिया-नरेश पण्टियोकस सूटरकी ओरसे डेमाकोस और डोउन सिउस और मित्र-नरेश. की ओरसे टोल्मी फालेडोलफस दूत थे। महाराजा अशोको समयमें बहुतसे परराष्ट्रों के साथ मित्रताके सम्बन्ध थे। इसी प्रकार अन्य राजाओंके दरवारमें भी भिन्न भिन्न समयोंमें दूसरे देशोंके दूत रहते रहे । विदेशोंके साथ मित्रता करनेके सम्बन्धमें अर्थशास्त्र में सविस्तर उपदेश दिये गये हैं और दूतोंको भिन्न भिन्न फोटियोंका वर्णन है । नोति वाश्मामृतमें यह लिखा है कि कोई दूत फैसा ही चण्डाल क्यों न हो उसके साथ अतीच शिष्टा- चारफा याच करना चाहिये और उसे कामी कष्ट न देना चाहिये। सनिक प्रबन्ध । सैनिक प्रवन्धके विषयमें भी दिन्दू-शानोंमें यदुत विस्तार- के साथ उपदेश लिखे हुए है। उनसे जात होता है कि प्राचीन भारतीय साम्राज्योंका सैनिक प्रवन्ध मतीच पूर्ण था और पलटनों तथा रिसालोंको बनावट और नाना प्रकारके युद्धोप.