पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४३२

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३६० भारतवर्षका इतिहास Local .०४१६ भारी फर वसूल करनेका यत्न न करें, और लालच या अधर्मसे अपना कोप न भरें। वे ऐसे कर्मचारियोंसे सावधान रहें जो प्रजाका रक्त चूसकर उनको प्रसन्न करना चाहते हैं। राज्यके व्ययों का ब्योरा देते हुए शुक्र-नीतिमें आगे लिखे नियमोंका वर्णन किया गया है। प्रथम यह कि राज्यकी आधी आय संचित रक्खी जाय और दूसरी आधीको इस प्रकार यांटा जाय:- नम्बरदारोंके चेतनोंमें .०८३' सेनाके लिये .२५ दानके लिये .०४१६ सर्वसाधारणके लाभार्थ इमारतोंके लिये .०४१६ कर्मचारियोंके वेतनके लिये राजा और उसके परिवारके खर्चके लिये .०४१६ व्ययोंका यह व्योरा हमारी इष्टिमें शास्त्रीय (साईटिफिक) नहीं है । परन्तु इससे यह प्रकट होता है कि हिन्दू-शास्त्रकारों- की सम्मतिमें किसी राजाको यह अधिकार न था कि राजकीय कोपको जैसे चाहे खर्च करे । शुक्र-नीतिके लेखफने राजाके व्यय: पर सीमा बांध दी है। चाणक्यने अपने अर्थशास्त्र में युवराज, दूसरे राजकुमारों, महारानी और दूसरी रानियों के लिये वेतन नियत कर दिये हैं। इनसे मालूम होता है कि प्राचीन कालमें हिन्दू-राजा राज्य-करोंके व्यय करनेमें ऐसे स्वतन्त्र न थे जैसा कि आजकल समझा जाता है । राज्य-करोंका पूरा निरीक्षण राज्यके कर्मचारियों के हाथ- में था। इनमेंसे फलफर जनरल और कोपाध्यक्षका उल्लेख हम पहले कर आये हैं। अर्थ-शास्त्रमें यह भी लिखा है कि प्रत्येक विभागके हिसाब नियमपूर्वक हिसाब-विमागके पास भेजे जाते