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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४४

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जाता। इस विषयार श्रीयुत प्रफुल्लवन्द्र रायने अपने 'हिन्दू- रसायनके इतिहासमें और डायर प्रजेन्द्रनाथ सोलने अपनी पुस्तक 'पाजिटिव साइंस आव दि हिन्दून' में बहुत कुछ प्रकाश डाला है। इसी प्रकार हिन्दू ललित कलाओंपर जो कुछ लिखा गया वह बहुत थोडा और अपर्याप्त है। हिन्दुओंकी पोतविद्यापर श्रीयुत राधाफुमुद मुखोपाध्यायकी पुस्तक पढने योग्य है। प्वाँकि राष्ट्रीय विद्यालयों और महाविद्यालयोंके लिये पुस्तककी मांग है इसलिये में अभी अपूर्ण पुस्तकको प्रकाशित करा रहा है। यदि राजनीतिक दौडधूपसे अवकाश मिला और जीवनका तन्तु भटूट बना रहा तो तीसरे संस्करणमें इस विषयपर इससे अधिक प्रकाश डालने की इच्छा रसता है। अध्यापकोंको चाहिये कि इस पुस्तककी सहायतासे अपने विषयपर अधिक जानकारी प्राप्त करके अपने विद्यार्थियों तक पहुंचायें। वरन् उसमें ऐसी मनोरजकता उत्पन्न करें कि वालक अपने आप उसे ग्रहण करते चले जाय । साधारण रसिकोंको भी इस पुस्तकके अध्ययनसे लाभ पहुंचेगा और उनकी इस विषय में रुचि बढ़ेगी। एप्रिल, १९२२ लाजपत राय २