४०२ 11.। नमकका तैयार करना और भिन्न भिन्न प्रकारके मादक पदार्थ भी राज्यके निरीक्षणमें होते थे। परन्तु शिल्पोंमसे सबसे बड़ा तथा सबसे अधिक उत्कृष्ट शिल्प वस्त्रका था। सई, ऊन, सन, वाल और रेशमका कपड़ा वुननेमें यह देश सदा संसारमें शिरमौर रहा है। समस्त संसारके कारीगरों और विशेषज्ञोंने इस कलामें इसको चरमोन्नतिको स्वीकार किया है। व्यापार- विभागपर इससे भी अधिक ध्यान दिया जाता था। इस विभाग- का प्रथम काम यह था कि माने और जानेके मार्गों को, चाहे वे स्थलके हों चाहे जलके, खुला रक्खे और प्रत्येक प्रकारकी विप- त्तियोंसे उनकी रक्षा करे। भारतके प्राचीन साहित्यमें और यूनानियों और चीनियोंके लेखों में इस देशकी बड़ी बड़ी सड़कों का बहुत वर्णन है । सामुद्रिक व्यापारके लिये जहाज और वन्दर- स्थान बनाये जाते थे। सिकन्दर जिन जहाजोंमें वापस गया वे सब भारतमें बनाये गये थे। वे उस समयके बहुत बड़े बड़े जहाज थे। उनके मांझी और जहाज चलानेवालेभीभारतीय थे। भारतकी समस्त बड़ी बड़ी नदियोंमें नावें चलती थीं । यहांके प्रसिद्ध बन्दर-स्थान प्रायः मलायार-तटपर स्थित थे। प्राचीन भारतका विदेशोंसे एक यहुत बड़े मानमें व्यापार था। इससे भारतको करोड़ों रुपयों का लाभ होता था। क्योंकि उस समय जितना कला-कौशल और उद्योग-धंधा भारतमें था उतना दूसरे देशोंमें न था। प्रत्येक प्रकारके मणि-मुक्का, रत्न, हीरक, अन्य बहुमूल्य पत्थर और सुवर्ण इस देशसे जाता था। नाना प्रकारके वस्त्र और मसाले भी यहाँसे बाहर जाते थे। घाहरसे भी विदेशी वस्तुएँ इस देशमें आती धीं। व्यापारविभागके अध्यक्षका यह काम था कि वह व्यापारियोंको इस प्रकारको जानकारी देता रहे कि कौनसे मार्गासे व्यापार करना,
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