पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सिके। हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति ४०३ लाभदायक है, भार ले जानेपर कितना व्यय होता है और कहाँ कहाँ किन किन वस्तुओंकी मांग है। जिन देशोंमें, वस्तुयें भेजी जाती थीं वह उनके वृत्तान्त, यहाँके नगरोंकी अवस्या, और चुङ्गी तथा राजस्वके नियमोंकी भी सूचना देता था। यह यात भी अव प्रमाणित हो चुकी है कि ईसाके सनसे पांच छः सौ वर्ष पूर्व भी इस देशमें चांदी, सोने और ताम्वेके सिक्के प्रचलित थे। हुण्डियोंकी प्रथा भी जारी थी। बौद्धकालके बहुतसे सिक मिल चुके हैं । ब्याज पानेके विपयमें भिन्न भिन्न शास्त्रोंके ब्याज खाना। भिन्न भिन्न आदेश हैं। घुछ शास्त्रोंमें ब्याज लेनेका सर्वथा निषेध है और कुछमें व्याजकी दर नियत करके यह उपदेश दिया गया है कि किसी अवस्थामें दुगुनेसे अधिक व्याज नहीं मिलना चाहिये। मगस्थनीज़ लिपता है कि जिस समय मैं भारतमें था उस समय सामान्यतः व्याजपर ऋण लेनेका नियम जारीन था। लोकल सेल्फ गवर्नमेंट। लोकल सेल्फ गवर्नमेण्ट अर्थात् स्थानीय स्वराज्य भारतमें उतना ही पुराना है जितना कि घेद। अगरेजी काल में सबसे पहली बार इसका नाश किया गया और फिर लार्ड रिपनके समयमै उसको पुनः जारी करनेकी चेष्टा की गई

  • बाते कि मासे पाल मोने के सि ईमादी छ: सौ वर्ष पहले एशिया-

कोचकर पन्तर्गत सडिया बनाये गये। परन्तु पधिक सम्भव है कि इस परसे A मल पिचलित । ऐपम को घोमि सिलदा समय रिले प्रचलित धे, पातु रोममें उसने पारभिश तिहास में मिौका प्रचार मथा। रोपी सिंहों का प्रचार एशियाको अपेक्षा पात पोहा।