पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४४८

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तीसरा परिशिष्ट आर्योंका मूल स्थान और वेदोंकी प्राचीनता । एक संक्षिप्त टिप्पणी। (क) आयौंका मूल स्थान-मनुष्य-समाजको प्रायः तीत या चार श्रेणियोंमें विभक किया जाता है-पहले आर्य, दूसरे मङ्गोल, तीसरे सेमेटिक, चौधे नीग्रो अर्थात् हब्शी। यूरोपकी समस्त वर्तमान जातियाँ, भारतीय और ईरानी आर्य जातिकी गिनी जाती हैं। सेमेटिक जातिके दो प्रबल प्रतिनिधि यहदी और भरव है। जापानी और चीनी मड्डोल-जातिसे हैं। और अफ्रीकाके अधिवासी और पशियाके दक्षिणी द्वीपोंके कुछ लोग हब्शी जातिसे कहे जाते हैं। यह प्रकट है कि यह विभाजन कोई ऐसा नहीं जो समाप्त हो जाय। परन्तु यहाँपर हमारा उद्देश्य मनुष्य-समाजकी सभी जातियोंका वृत्तान्त लिखना नहीं, घरम् भूमिकाके रूपमें केवल इतना ही लिखना आवश्यक प्रतीत हुआ है। यूरोपीय लोग अपने आपको आर्य-जातिसे बताते हैं और इस समय संसारके शासनकी चाग-डोर उनके हाथमें है, इस. लिये स्वभावतः ही इस प्रश्नमें उन्हें अधिक रुचि है कि यह जातिमारम्भमें कहांसे आई और इसकी उन्नतिकी भिन्न भिन्न अवस्थायें क्या और कहाँ हुई। कदाचित् यही कारण है कि । यूरोपीय विद्वान आर्य वंशको मनुष्य-जातिके शेष सभी वंशोसे !