४०४ भारतवर्षका इतिहास भारतका स्थानीय स्वराज्य प्रामोंसे मरम्म होता था। गांवोंकी पञ्चायतें गांयका समस्त भीतरी प्रयन्ध करती थीं। खेतोंकी सीमा पाँधना, खेतोंको बांट, खसरेके शजरेकी व्यवस्था, गांवका आय और व्यय, शिक्षा और स्वच्छताका प्रबन्ध, कला- कौशल, फपि और सिंचाई, दान-पुण्य और अभियोगोंका निर्णय सब उनके हाथ में था। कैन्द्रिक शासन सामान्यतः कमी ग्रामोंके भीतरी विषयों में हस्तक्षेप न करता था। ग्रामोंमें यह प्रबन्ध लगभग चन्द्रगुप्तके समय तक ज्योंका त्यों जारी रहा। उस समय छोटे नगरोंमें भी ऐसा ही प्रयन्ध था। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रगुप्तके समयमें कैन्द्रिक शासन ग्रामों और नगरोंके भीतरी प्रवन्धमें अधिक हस्तक्षेप करने लगा। फिर भी यह हस्तक्षेप ऐसा न था जिससे पञ्चायतोंके स्थानीय स्वराज्यमें कुछ अन्तर पड़ता। अगरेज़ी कालके भारम्भ तक भी उत्तर और दक्षिण भारतमें यह प्रबन्ध ऐसा पूर्ण था कि सर चार्लस मेटकाफ़ और सर चार्लस मनरो दोनोंने इस बातकी सही की है कि भारतयर्पके ग्राम एक प्रकारके छोटे छोटे लोक- तन्त्र राज्य थे जो गांवके अधिवासियोंकी सभी आवश्यकताओं- को पूरा करते थे। इन अङ्गरेज़ विद्वानोंने उस समयके ग्रामोंके जो वृत्तान्त लिखे हैं वे यहुत फुछ उन वृत्तान्तोंसे मिलते हैं जो पुरानी पुस्तकों या पुराने शास्त्रोंमें लिखे हैं।
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