पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४८०

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केम्ब्रिज हिस्टरी आव इण्डियाका प्रथम खण्ड ४३७ वारहवें परिच्छेदमें सामान्यतः स्मृति और धर्म-शास्त्र । स्मृतियों और शास्त्रोंके विषयपर विचार किया गया है, और उन शास्त्रों तथा स्मृतियों में जो विरोध है उसको भी बतलाया गया है। पृष्ठ २९२ पर महाभारतकी व्यवस्था उद्धृत की गई है कि जो व्यकि लड़की घेचता है वह नरकको जाता है। गौतमके प्रमाणानुसार मनुष्योंके क्रय. विक्रयका घोर निषेध किया गया है। इसी पृष्ठपर यह कहा गया है कि सीताजीका विवाह छः वर्षको अवस्थामें हुआ था। इस कथनके समर्थनमें कोई प्रमाण नहीं दिया गया। त्रियों की स्थितिपर विचार करते हुए भी किसी कदर पक्षपातका प्रकाश किया गया है। उदाहरणार्थ, स्त्रियों की महत्ता अथवा उनके सम्मानके लिये मनुस्मृतिकी जो माशाये हैं उनके विषयमें यह सम्मति प्रकट की गई है कि स्त्रियोंका सम्मान केवल माता होनेके कारण किया जाता था । मनुस्मृतिके प्रमाण- से यह लिखा है कि माताकी पदवी पिताके बराबर समझी गई है। परदेके विषयमें यह लिखा है-"यह निश्चय नहीं कि त्रियोंको अन्तःपुरमें बन्द करनेकी प्रथा कबसे जारी हुई। अधिक सम्भव है कि पश्चिमी जातियोंके आक्रमणोंने हिन्दुओंको यह (प्रथा) ग्रहण करनेपर विवश किया ।" (पृ. २६२-२६३) तेरहवें परिच्छेदमें अध्यापक रपसन पुराणोंका और राज- परिवारोंकी वंशावलियों और अन्य राजनीतिक घटनाओंका निरूपण करने में उनसे जो सहायता मिलती है उसका वर्णन करते हैं।

  • उस शोक का उल्लेख नहीं किया गया जिसमें माताका पिता सौगुना

अधिक सम्मान करनेको पाना है और निषका प्रमाप रामायपमें दिया गया है। यह उस समयका प्रसद्ध है जब यौराम कौशल्यासे पाना लेने गये थे और कौशल्याने यह कहा था कि मेरी पाजा तेरे पिताकी पाचासे प्रधिक महत्व रखती है।' । 2