पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४४६ भारतवर्षका इतिहास परिच्छेदका घर्णन करते हुए यूनानी दूत एक प्रकारके चोगे, चादर और पगड़ीका उल्लेख करता है। यह छातों और जूतों- के उपयोगका भी उल्लेख करता है (पृ०४१२)। वह लिखता है कि भारतीय लोग परिधानमें चमक दमकको पसन्द करते है। सोने और जवाहरातके आभूषण पहनते हैं और छतरियाँ लगाते हैं (पृ.४१२)। भारतीयों की ईमानदारी और विवाद तथा सती यादिसे सम्बन्ध रखनेवालीरीतियोंके विषय में हम मूल पुस्तकमें लिख चुके हैं। यहांपर केवल उन बातोंका वर्णन करते हैं जिनका उल्लेख मूल पुस्तकमें नहीं हुआ या केवल संकेत रूपसे हुआ है। नियारकस लिखता है कि ईरानके सदृश भारतमें राजाओं. को प्रणाम करते समय भूमि-चुम्वन या पृथ्वीतक झुकनेकी प्रथा न थी (यह प्रथा भारतमें ईरानसे मुसलमानी कालमें आई)। जन्तुओंपर भारतीयोंका प्रायः प्यार था वे घुड़दौड़ आदिके रसिक थे। यह परिच्छेद बहुत ही मनोरञ्जक है । सत्रहवें परिच्छेदमें सीरिया, पार्थिया और बाखतरियाके राज्योंका वहांतक वर्णन है जहांतक उनका सम्बन्ध भारतसे था। 1 अठारहवें परिच्छेदमें चन्द्रगुप्तका वृत्तान्त है। इस परि- च्छेदके लेखक श्रीयुत टामस पृष्ठ ४७३ पर लिखते हैं कि इस यातका कोई प्रमाण नहीं कि चन्द्रगुप्तकी नीति प्रजापीड़नकी नीति थी। विसेंट स्मिथ और जस्टिनने यह मत प्रकट किया है। उन्नीसर्व परिच्छेदमें मौर्य-राज्यके संगठनका वर्णन है। इसको हम अपनी मूल पुस्तकमें सविस्तर लिख चुके हैं। पृष्ठ

  • 'The Indians do not think lightly of any animal, tame

or wild.' p. 417.