पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/५२

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. प्रस्तावना २५. मत प्रकट किया था कि मुसलमानोंके शासन-काल के पहले हिन्दुओं और बौद्धोंमें इस प्रकारके रक्तपात और युद्ध जारी रहे। परन्तु अधिक प्रतिष्ठित विद्वानोंने इस मतका प्रबल खंडन किया है। यह भी कहा जाता है कि मुसलमानी शासन-कालमें हिन्दुओंपर भतीम धार्मिक अत्याचार हुए । यद्यपि यह ठीक हो कि कई मुसलमान भाक्रमणकारियोंने ऐला किया, परन्तु उसकी तहमें धार्मिक पक्षपात बहुत फ्रम था। वे अत्याचार और अनर्थ अधिकतर राजनीतिक और आर्थिक कारणोंसे किये जाते थे । नादिरशाहने जिस समय दिल्लीमें सर्व-हत्याकी भाशा दी तो हिन्दू और मुसलमानका कोई भेद नहीं रयता । औरण- अपने अपने भाइयों और उनके साथी मुसलमानोंका उसी प्रकार वध किया जिस प्रकार कि हिन्दुओंका। भारतके इति- हासमै, भली भांति ढूँढ़नेसे भी किसी व्यक्तिको उस प्रकारके रक्तपातका चिह्न नहीं मिलता जैसा कि मांसमें सेंट यारथलमूके दिन हुआ और हालेण्ड, बेलजियम, जर्मनी, स्काटलैण्ड, इङ्गलैण्ड और आयरलैण्ड में भिन्न भिन्न ईसाई सम्प्रदायोंमें कई शताब्दियोंतक जारी रहा और जिसमें लापों मनुप्यके वकी नौवत पहुंची। भारतके इतिहासमें उस प्रकारयी लड़ाइयोंका भी कोई 'उदाहरण नहीं मिलता जैसी कि मुसलमानों और ईसाइयों में 'पवित्र भूमि' के लिये हुई। कुछ हिन्दू राजाओंने निस्स देश जेनों और चौद्धोंपर कुछ अत्याचार किये और जैन और बौद्ध राजामोंने भी हिन्दुमोंपर अत्याचार किये, परन्तु साधारणतया हिन्दुओंके समयमें बौद्ध और जैन-धर्म के प्रचारकोंका और बौद्ध और जैन राजाओंके समयमें हिन्दू पण्डितोंका सम्मान होता. रहा । फई मुसलमान मानमणकारियोंने भी निस्सन्देश दिन्लू