२६ भारतचर्पका इतिहास मन्दिरोंको गिराया और हिन्दू मूर्तियोंको तोड़ा, परन्तु यह सब फुछ अधिकतर आरम्भिक मुसलमान आक्रमणकारियोंने किया और यहुत थोड़े कालतक यह सिलसिला जारी रहा। प्रत्येक राजसत्ता अपनी राजनीतिक और सैनिक शक्तिको दृढ़ करनेके लिये धर्मका उपयोग दालके रूपमें करती है। जहां राज कर्मचारियोंका धर्म शासितोंके धर्मसे भिन्न हो वहां राज्य अपने सहधर्मियोंका कुछ न कुछ पक्ष अवश्य लेता है। इस पक्षपातसे न हिन्दू माली है, न मुसलमान और न ईसाई । परन्तु भिन्न भिन्न धर्म-समाजोंमें भेदभाव उत्पन्न कराना और उनको एक दूसरेके विरुद्ध भड़काना प्रायः याह्य शासकोंकी विशेषता रही है। शासक किसी विजित या शासित देशको अपनी मातृ भूमि यना लेते हैं वे स्वयं या उनके उत्तराधिकारी नियमपूर्वक ऐसा नहीं करते। भारतकी जनसंख्या इतनी अधिक है और हिन्दू मुसल. मानोंका दल इतना बड़ा है कि उनके लिये एक दूसरेका उन्मू- लन करना असम्भव है। ऐसी अवस्थामें उन सभी धार्मिक सम्प्रदायोंका कर्तव्य हो जाता है कि पुराने उपाख्यानों और ऐतिहोंको भुलाकर अपने वर्तमान और भविष्यके हितके लिये अपने धार्मिक मत-भेदोंको ऐसा सुलझा लें कि उनसे किसी दूसरेको लाभ उठानेकी गुमायश न रहे। किसी यच्च की शिक्षा तयतक राष्ट्रीय प्रयोजनोंके लिये भारतीय इतिहासकी नहीं समझी जा सकती जबतक कि निर्दोष और नियमपूर्वक इतिहासका ज्ञान न हो जिसके अन्दर उसको उस जाति और उस समाजके शिक्षा तथा अध्ययनकी यह उत्पन्न हुआ है और जिसमें रहकर श्रावश्यकता उसे अपने मानुपी कर्तव्योंको पूरा &
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