पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/५५

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२४ परन्तु ये सब । । । भारतवर्पका इतिहास अपने रोगीके शारीरिक इतिहासको जाननेका यत्न करता है उसी प्रकार जातिके एक सुशिक्षित सदस्यका यह कर्तव्य है कि वह अपनी जातिके कारचारमें यथोचित रूपसे भाग लेनेके लिये अपनी जातिके भूतपूर्व इतिहासका ज्ञान रखता हो। आधुनिक भारतवासी उन भारतवासियोंके स्थानापन्न और उत्तराधिकारी हैं जो इस देशमें आजसे पांच सहस्त्र वर्ष पूर्व वसते थे। इस अवधिमें उनमें कई नयी जातियां आकर सम्मिलित हो गई और, उनकी सभ्यतापर भी कुछ याह्य प्रभाव पड़े। उनके व्यक्तिगत और जातीय इतिहासके भिन्न २ पृष्ठ हैं। इनका ज्ञान प्राप्त किये बिना वे न तो अपने व्यक्तित्वको अच्छी तरह समझ सकते हैं और न अपने जातीय व्यक्तित्वको भली भांति जान सकते हैं। प्रत्येक ऐसे व्यक्तिके लिये जो अपनी जातिके इतिहाससे अनभिज्ञ हो उन्नतिका यल या जातीय दौडधूपमें सम्मिलित होनेकी चेष्टा करना एक वालिश कर्म है। इसमें बहुत सी भूलोंकी सम्भावना रहती है। जो जातियां उन्नतिके आकाशसे गिरकर आज अवनतिको पृथ्वीपर बसी हैं, जो जातियां खतन्त्रताको खोकर आज दासत्वकी दलदलमें फंसी हुई हैं, जो जातियां किसी समय स'सारफी प्रथम पंक्तिमें बैठ फर आज पिछली पक्तियों में खड़ी हैं, उनके लिये विशेष रूपसे आवश्यक है कि उनकों अपनी भूतपूर्य उन्नति और अवनतिके इतिहासका पूर्ण ज्ञान हो । जातियोंके बीच जो दौडधूप सदा और प्रत्येक समयमें जारी रहती है उस दौड़धूपमें भिन्न २ जातियां मिन २ कालमें नीचे ऊपर होती रहती है। ये परिवर्तन सार्वभौम नियमोंपर उसी प्रकार अवलम्बित है जैसे कि संसारके भौतिक यौर भूतत्व-संबन्धी परिवर्चन । संसार सदा बदलता रहता है। जहां आज बड़े २ ।