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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/५४

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प्रस्तावना २७ > करना है। प्रत्येक व्यक्ति जो संसारमें जन्म लेता है वह बहुतसी प्रवृत्तियां अपने मातापिता और प्राचीन पूर्वजोंसे दायमें पाता है। जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य अपने पूर्वजोंका प्रतिनिधि है उसी प्रकार प्रत्येक मानुपी समूह अपने जातीय पूर्वजोंका प्रतिनिधि है। कोई समाज अपनी वर्तमान अवस्थाओंको पूर्णरूपसे नहीं जान सकता जबतक उसे यह शान न हो कि वह किन किन अवस्थामों से होकर यहांतक पहुंचा है। समाजकी उन्नतिके लिये यह आवश्यक है कि उसे अपनी सब पूर्व अवस्थामोंका पूर्ण ज्ञान हो। प्रत्येक मनुष्य और प्रत्येक मानव-समुदाय अपने समाजकी वर्तमान अवस्थासे प्रभावित होता है। वर्तमान भव- स्थाये भूतकालीन अवस्थाओंका परिणाम हुआ करती हैं। ऐसी अवस्थामें प्रत्येक मनुष्यसमुदायकी उन्नतिके लिये आवश्यक है कि उसको अपनी जातिके इतिहासकी अच्छी जानकारी हो। जबतक उसको ऐसी जानकारी न हो वह अपनी जातिको उन्नति और सुधारके क्षेत्रमें कोई यथोचित पग उठानेके योग्य नहीं हो सकता। प्रत्येक जातिको सभ्यता और नागरिकता अपना इतिहास रखती है। कई जातियां अपनी पहली सभ्यतासे गिरकर अपने मापको अधःपतनको अवस्थामें पाती है। दूसरी जातियां वर्त- मान कालमें स्मृद्धिशालिनी होते हुए भी अधिक उन्नतिकी इच्छुक हैं, क्योंकि किसी जातिका किसी कालके लिये एक ही अव. स्थामें स्थिर रहना असम्भव है। परिवर्तन मनुष्यका आवश्यक धर्म है। जो व्यक्ति उन्नति नहीं करता वह अवनति करता है। परन्तु उन्नति और अवतिके अर्थों में भी जातियों और मनुष्यों.. के माशयोंमें अन्तर हो सकता है। इसलिये प्रत्येक दृष्टिसे जिस योग्य डायर रोगके निदान और चिकित्साके पूर्व प्रकार एक