भूगोल परन्तु इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक समयमें भी देशकी प्राकृतिक दशामें यदुत परिवर्तन हुभा है। उदाहरणके लिये नदियोंहीको ले लीजिये। प्रायः सब ही नदियोंके प्रवाह-मार्ग बदल गये हैं। वर्तमान नदियां जिस स्थानपर वैदिक कालमें बहती थी अव वहां नहीं यहतीं। सतलुज नदी किसी समयमें भटिण्डाके दुर्ग- के नीचे बहती थी पर अब वह फीरोजपुर नगरसे दो तीन मील दूर रहती है। इसी प्रकार इस समय यह कोई नहीं बता सकता है कि जय राजा सिकन्दरने आक्रमण किया था उस समय सिन्धु नदीका प्रवाह-मार्ग कहाँ था; अथवा गङ्गा, कोसी, ब्रह्मपुत्र इत्यादि अन्य नदियां कहाँ कहाँ यहती थीं। कई नदियोंका तो अब कहीं चिह्न भी नहीं है, जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध नदी सरस्वती है। हिन्दुओंकी रुचि नदियों के किनारे बड़े बड़े नगर बसानेकी ओर बहुत थी। इसलिये आज- कल के मानचित्रोंपर उनके पुराने नगरोंका पता लगाना प्रायः असंभव है। भारत के इतिहासमें कितने ही नगर ऐसे मिलेंगे जो अनेक चार उजड़े और अनेक वार बसे। कुछ के नाम भभीतक वही है। पर बहुतोंके बदल गये हैं। कई स्थानोंपर खुदाई करके पृथ्वीके भीतरसे दो दो मंजिले ऊंचे घरोंके खंडहर निकाले गये हैं। ये ये हुए नगर भारतके प्रत्येक भागमें बहुत मिलते हैं। अनेक स्थानोंपर ये बँडहर बड़े बड़े टीलोंसे ढके हुए हैं। पटनाके समीप,भूमिको बहुत गहरा खोदकर प्राचीन पाटलिपुनके विशाल राजभवनोंके खंडहर निकाले गये हैं। इसी प्रकार रोहतक और हिसारके जिलों में भी भूमि खोदनेपर फई मकान निकाले हैं। देहली और फनीज आदि घड़े बड़े नगरोंके आस पासकी भूमि इस प्रकारके खंडहरोंसे भरी पड़ी है। रावलपिण्डीके समीप हिन्दुओंका प्रसिद्ध विश्वविद्यालय, तक्षशिला, भूमिको खोदकर .
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/७२
दिखावट