आप्योंके समयके पहले भारतकी दशा ५१ । आदिकी सृष्टि हुई। फिर और अधिक अच्छी बनावटको मछ- लियां तथा वन आदि प्रकट हुए। इसके पीछेका समय रेंगने- वाले जीवोंका समय कहा जाता है। अन्तिम समय वह है जर पृथ्वीपर घास और जङ्गल उत्पन्न हुए और पशुओंमें दूध पिलानेवाले जीव दिपायो पढ़े। (मनुष्य भी एक दृध पिलाने- बाला जीव है।) उसीके माथ ही मनुप्यको भी उत्पत्ति हुई। इस समयके तीन भाग किये गये हैं, अर्थात्- प्रथम वह भाग जिसको प्राचीन "शिला-काल" कहते है या यों कहिये कि जिस समयमें मनुष्य साधारण मोटे मोटे पत्थरके यन्त्रोंसे काम लेता था। मनुष्य जीवनका यह काल ईमाके समयसे छः लाख वर्ष पहलेका काल गिना जाता है। इस समयमें कई चार बर्फ के तूफान आये । घर्तमान आकारकी पृथ्वीको यने हुए लगभग पचास सहस्र वर्ष हुए । दूसरा समय वह है जिसमें पत्थरके अच्छे यन्नोंका विकास हुआ है। तीसरा समय वह है जब मनुष्यने धातुओंका उपयोग विया ऐसा जान पडता है कि प्राचीन कालमें मनुष्योंकी करें नहीं बनायी जाती थीं। उस समयके मनुष्योके कुछ चिह्न दक्षिणी भारतमें पाये जाते हैं । पर दूसरे फालके अर्थात् सुन्दर शिला-यन्लोंके निशान अधिकांश दिखायी देते हैं। ऐसा कहते है कि इन लोगोंको स्वर्णके अतिरिक्त अन्य किसी धातुके. अस्तित्वका ज्ञान न था। वे मिट्टी के बर्तन बनाते और गऊ, भैंस, 'वरी इत्यादि पालतू पशु रखते थे। ये लोग पेती चारी करते थे। वे अपने मुर्दो को धरतीमें गाड़ते और उनकी करें बनाते थे। पर उस समयको करें भी मर भारतमें विरले ही मिलती है। आरम्भ -
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/७८
दिखावट