थायों के समयके पहले भारतकी दशा. . यह बात कहांतक नत्य है, परन्तु यह तो स्पष्ट है कि जबतक आर्यो की सभ्यताका प्रवेश भारतवमें नही हुआ था उस समयतक यहांकी सभ्यता दक्षिणी ही थी। भारतीय प्रजाके कौन कौनसे अंग है इसका वर्णन भूमि- कामें हो चुका है। उसको दुहरानेकी भावश्यकता नहीं। पर संक्षेपसे यह लिख देते हैं कि साधारणतया भारतमें दो प्रकारके मनुष्य पाये जाते हैं। एक वे जो लम्बे डोल, श्वेत वर्ण और लम्बी नाकवाले हैं। ये लोग साधारण तौरपर आर्य-चंशसे समझे जाते हैं। दक्षिणी भारतमें मालाचारके नामदी ब्राह्मण भी ऐसे ही हैं। दूसरे प्रकारफे ये मनुष्य हैं जिनका डील ठिंगना, रंग काला और नाक फुछ चौड़ी होती है। कहा जाता है कि इस प्रकार- के मनुष्य भारतके मूलनिवासियोंकी सन्तान हैं और उनके रक्तमें बहुत थोड़ी मिलावट है ।। इनके अतिरिक्त एक और प्रकारके भी मनुष्य है जो मङ्गो- लियन जातिसे हैं, जैसे कि तिब्धतवाले या गोरपा लोग। पहले प्रकारके मनुष्यप्रायः उत्तर-पश्चिमसे भाये । उनमें हिन्दू मार्या (इण्डो आरियन ), थोडेसे यूनानी, शक, यूची और हुण जातिके भी मनुष्य मिले हुए है। इस देशमें हिन्दू आर्यों को प्रवेश- का ठीक ठीक समय निरूपित नहीं किया जा सकता। पर इस विषयमें जो जो कल्पनायें की जाती हैं उनका वर्णन पहले किया जा चुका है। इसके पश्चात् ऐतिहासिक कालतक इन- में न मालूम कितनी अन्य जातियां आकर मिल गई। केवल इतना मालूम है कि सिकन्दरके धावेके पश्चात् यूनानियोंकी कुछ संख्या पक्षाव देश तथा पश्चिमी सीमापर यस गई। इसके पश्चात् ईसाके दो शताब्दी पहले यहां उस जातिका a
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