, भारतवर्पका इतिहास प्रवेश हुआ, जिसको हिन्दुओंके ग्रन्थों में 'शक' लिखा है। इन लोगोंमें भद्द, कुरूप तथा छोटे नेत्रवाले मङ्गोल-जातिके मनुष्य भी मिले थे। पर इनके अतिरिक्त इस जातिमें अन्य रूपवान जातियां भी मिश्रित धीं जिनका डोल-डील और रूप- रंग तुकीके समाग आर्यों को सा था । - कहा जाता है कि ईसाकी प्रथम शताब्दीमें भारतके अन्दर उत्तर-पश्चिम मार्गसे एक और भो भ्रमणशील जातिका प्रवेश हुआ। इस जातिको यूवी कहते है। इसके मनुष्य फेलते फैलते नर्मदा-तटतक पहुंच गये। इनके एक प्रसिद्ध अशका नाम "कुशाण" था जो कि बड़े डील-हौल और श्वेत रंगके थे। यदुत सम्भव है इनका ईरानियोंसे भी कुछ सम्बन्ध था । यह भी कहा जाता है कि कुछ अन्य जातियाँ भी, जिनको साधारण तौर पर 'हण' कहते हैं, पांचवीं और छठी शताब्दियोंमें मध्य एशिया- के उपवनोंसे चलकर भारतमें आई और यहां रहने सहने लगीं। लोगोंका अनुमान है कि राजपूतोंकी कुछ जातियाँ और जाट तथा गूजर लोग इसी हूण जातिकी सन्तान हैं । ये सब यातें यहां केवल इस पुस्तकको सर्वाङ्ग पूर्ण घनानेके लिये लिखी गई हैं, पर हमारी सम्मतिमें इन सारे आगमनोंका कोई गहरा प्रभाव भारतकी सभ्यतापर नहीं पड़ा। यह स्पष्ट है कि हिन्दू-आर्य भारतमें उत्तर-पश्चिमी दरों द्वारा आये और कई शताब्दियोंतक ये एक मोर तो भारतवर्षके निवासियोंसे युद्ध करते रहे और दूसरी ओर नयी आनेवाली जातियोंसे , . अपनी रक्षा। इसमें सन्देह नहीं हो सकता कि हिन्दू-आर्यो में आदि समूहों- के यहां आनेके पश्चात् उसी प्रकारकी और भी जातियां उत्तर- पधिमी मागाँसे भारतमें आई होंगी। सम्भव है कि स्वयं हिन्दू
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